अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो केजरीवाल सरकार को कब का बर्खास्त कर चुका होता!
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If I were the Prime Minister, the Kejriwal government would have been sacked immediately!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


यद्यपि मेरी नज़रों में केजरीवाल भारत में इस सदी के सबसे फ्रॉड नेता हैं, फिर भी मैं उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ, यदि वे सचमुच अस्वस्थ हैं और वैसी कोई नौटंकी नहीं कर रहे, जैसी सोशल मीडिया पर कुछ लोगों द्वारा बताई जा रही है, तो। दरअसल, दुनिया में कुछ फ्रॉडतम लोगों का होना भी ज़रूरी है, ताकि लोगों को अच्छे व्यक्तियों का मूल्य पता चलता रहे।

हाल ही में दिल्ली में सिर्फ दिल्ली वालों का इलाज हो, ऐसा कहकर और इस आशय का फैसला लेकर केजरीवाल ने अपने क्षुद्रतम विचार जगजाहिर कर दिये थे। वह तो भला हो उपराज्यपाल का, जिन्होंने केजरीवाल के इस अमानवीय, जनविरोधी और राष्ट्रविरोधी फैसले को ख़ारिज कर दिया।

मुझे उस दिन तो तकलीफ होगी, जिस दिन सीमित संसाधनों के कारण सभी ज़रूरतमंदों को समुचित इलाज नहीं मिल सके, लेकिन उससे भी ज़्यादा तकलीफ उस दिन होगी, जिस दिन देश की राजधानी में ही व्यवस्थागत स्तरों पर देश के नागरिकों के साथ बाहरी और भीतरी कहकर भेदभाव शुरू हो जाएगा और इसी आधार पर किसी को इलाज दिया जाएगा और किसी को मना कर दिया जाएगा। क्योंकि दुर्भाग्य से यदि किसी दिन ऐसा हुआ, तो उस दिन इस देश की एकता और अखंडता ही खतरे में पड़ जाएगी।

दिल्ली में कौन बाहरी है और कौन भीतरी है? अगर भारत सबका है तो उसकी राजधानी दिल्ली भी सबकी है। इस महामारी काल में, जब देश के हर नागरिक को सिस्टम और सरकारों का सम्बल और अपनापन चाहिए, ताकि उसका यह विश्वास कायम रहे कि यह देश उसका है और वह इस देश का है, इस सामान्य सी बात को नहीं समझने वाले केजरीवाल मेरी नज़रों से पूर्णतः गिर चुके हैं।

जब केजरीवाल ने ऐसा फैसला किया कि दिल्ली के अस्पतालों में केवल दिल्ली वालों का इलाज होगा, तो उन्होंने स्वतः ही इस आरोप को सच साबित कर दिया कि लॉकडाउन-1 की शुरुआत में यह उन्हीं की इच्छा और साज़िश से संभव हुआ कि बिहार और यूपी के हज़ारों मज़दूरों को आनंद विहार बॉर्डर पर छुड़वा दिया गया था।

सोचिए, यह कितना बड़ा गुनाह था इस देश की एकता और अखंडता के विचार के प्रति, देश के संघीय और संवैधानिक मूल्यों के प्रति, और देश के आम गरीब मज़दूरों और नागरिकों के प्रति! …और यहीं से भारत में लॉकडाउन की विफलता का पहला अध्याय लिखा गया, जिसका अनुसरण करते हुए अन्य कुछ राज्यों से भी बिहार और यूपी के मजदूरों को साजिशन भगाया गया और जिसकी वजह से आज कोरोना पूरे देश में भयावह रूप से फैलता जा रहा है और 7200 से भी ज़्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं।

क्या विडंबना है कि केजरीवाल जैसे क्षुद्र विचारों वाले नेता एक तरफ तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए घुसपैठियों को भी भारत की नागरिकता दिलाने के लिए देश भर में हिंसक और साम्प्रदायिक आंदोलनों को समर्थन देते हैं, वहीं दूसरी तरफ अपने ही देश के नागरिकों को देश की राजधानी में ही बाहरी बताकर अपमानित करते हैं और उन्हें उनके बुनियादी अधिकारों से महरूम कर देना चाहते हैं।

याद कीजिए कि इस एक आदमी ने पिछले कुछ महीनों में देश को कितना नुकसान पहुंचाया है। इसने अपने अमानतुल्लाह खान जैसे विधायकों और नेताओं के ज़रिए न सिर्फ सीएए के खिलाफ मुसलमानों को भड़काया, बल्कि शाहीन बाग में एक ऐसे साम्प्रदायिक और राष्ट्रविरोधी आंदोलन को खड़ा किया, जो पूरे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द को तार तार कर रहा था और जिसकी परिणति अंततः दिल्ली दंगों के रूप में हुई, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए। अब इसमें दो राय नहीं कि दिल्ली दंगों के पीछे केजरीवाल के ताहिर हुसैन और अमानतुल्लाह खान जैसे अनेक पोसपूतों की लंबी प्लानिंग और तैयारी थी।

केजरीवाल स्वस्थ हो जाएं, हम उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं, क्योंकि हम केजरीवाल की तरह अमानवीय, विभाजनकारी, नक्सलवादी, अराजक और राष्ट्रविरोधी सोच के लोग नहीं हैं। लेकिन ऐसे लोग एक भी दिन सत्ता में बने रहने के हकदार नहीं हैं।

आप लोग केंद्र की मोदी सरकार पर तानाशाह होने के आरोप लगाते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि एन्टी-सीएए प्रोटेस्ट शुरू होने के बाद से मोदी सरकार लगातार कमज़ोरी का प्रदर्शन कर रही है। चाहे वह इस देशविरोधी आंदोलन को देश भर में सुलगने देना हो, या दिल्ली दंगों का हो जाना हो, या तबलीगियों के मामलों की हैंडलिंग हो या फिर लॉकडाउन को विफल किये जाने की साज़िशों के बीच घुटने टेकना हो।

बचपन में हमें लेख लिखने को मिलता था- “अगर मैं प्रधानमंत्री होता?” तो यकीन मानिए, अगर मैं प्रधानमंत्री होता, तो एक मुकम्मल और फ़ास्ट ट्रैक जांच बिठाकर एन्टी-सीएए प्रोटेस्ट को हवा देने, दिल्ली में दंगा कराने, महामारी काल में देश की राजधानी से बड़ी संख्या में नागरिकों को भगाकर देश भर में महामारी फैलाने, देश की राजधानी में देश के नागरिकों को बाहरी कहकर भेदभाव करने के जुर्म में दिल्ली की केजरीवाल सरकार को अभी तक बर्खास्त कर चुका होता।

जिस लोकतंत्र में कसूरवारों को उसके किये की सज़ा नहीं मिलती और केवल राजनीतिक व्यक्ति होने के कारण उसके सैंकड़ों गुनाह माफ कर दिये जाते हैं, उस देश को दंगों, महामारियों, बीमारियों, भ्रष्टाचार, जातिवाद, साम्प्रदायिकता किसी भी बुराई से नहीं बचा सकते आप। भारत को लिजलिजा लोकतंत्र नहीं, एक मजबूत लोकतंत्र चाहिए, जिसमें कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि देश और उसके नागरिकों के हित सर्वोपरि हों। धन्यवाद।



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