क्या गंदे पानी के जरिए भी फैल सकता है कोरोना? इस जांच से मिलेगा जवाब
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कोरोना क्विक अपडेट

  • स्वास्थ्य मंत्रालय के 15 मई 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अभी कोरोना के 3673802 एक्टिव केस हैं, 20432898 लोग ठीक हो चुके हैं और 266207 की मृत्यु हो चुकी है।
  • वेबसाइट वर्ल्डमीटर्स.इनफो के मुताबिक, भारत कोरोना से मृत्यु के मामले में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना से पूरी दुनिया में अब तक 16,15,13,458 लोग संक्रमित हुए हैं और 33,52,109 लोग दम तोड़ चुके हैं।
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This test can be helpful in preventing the spread of corona virus in slums

जरा सोचिए कि कोरोना वायरस (Coronavirus) का संक्रमण भारत में भी यदि सामुदायिक स्तर पर फैलने लगे यानी कि लोगों के बीच एक-दूसरे में तेजी से फैलने लगे या फिर किसी स्लम इलाके में या बस्ती आदि में पहुंच जाए तो इसे रोक पाना फिर कितना मुश्किल होगा?

मुंबई के धारावी (Dharavi in Mumbai) में पहला पाॅजीटिव मामला सामने आने से चिंता बढ़ गई है। ऐसे में कोरोना वायरस का संक्रमण क्या दूषित पानी के जरिये भी फैल सकता है, यह एक ऐसा सवाल है, जिसका सवाल ढूंढ़ने की कोशिश शोधकर्ता और जोर-शोर से करने लगे हैं।

यदि इसका जवाब मिल गया तो कोरोना वायरस के संक्रमण से संबंधित जानकारी हासिल करने में यह मील का पत्थर साबित हो सकता है। जिन समुदायों के बीच कोरोना वायरस का संक्रमण फैला है, उनके बीच दूषित पानी की इसमें क्या भूमिका रही है।

इन्होंने किया है ये शोध

  • यूके में क्रेनफील्ड वाटर इंस्टीट्यूट (Cranfield Water Science Institute) के वैज्ञानिकों के साथ अन्य शोधकर्ताओं ने इस शोध को अंजाम दिया है।
  • दरअसल उन्होंने यह पता करने की कोशिश की है कि जो पानी मल या मूत्र आदि की वजह से दूषित हो जाता है, वह किसी तरीके से अपने साथ कोरोना वायरस को भी बहा कर ले जाता है और संक्रमण फैलाता है। इससे नमूने लेकर इसका पता लगाने का प्रयास शोधकर्ताओं ने किया है।

किट की खासियत

इन्वायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलाॅजी (Environmental Science & Technology) नामक जर्नल में यह शोध प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन प्लांट्स में दूषित पानी को ट्रीट किया जाता है, वहां पेपर आधारित तेजी से टेस्ट करने वाली किट के जरिये इसमें कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाना मुमकिन हो सकता है। शोध के मुताबिक इससे यह पता करने में आसानी होगी कि ऐसे किट के जरिये COVID-19 के संक्रमण को स्थानीय स्तर पर फैलने से रोका जा सकता है या नहीं।

रखी जा सकेगी नजर

अध्ययन के सह लेखक क्रेनफील्ड वाटर इंस्टीट्यूट के जुगेन यांग (Zhugen Yang) के अनुसार पेपर एनाटिकल डिवाइस से यह पता करने में मदद मिलेगी कि मानव अपशिष्टों के जरिये कोविड-19 फैल सकता है या नहीं। शुरुआती चरण में ही इसके जरिये दूषित पानी पर स्थानीय इलाकों में नजर रखना आसान हो पायेगा, जिससे स्वास्थ्य सेवा से जुड़े अधिकारी स्थानीय स्तर पर आबादी को इसके संक्रमण से बचा पाने के लिए त्वरित और आवश्यक कदम उठा पाएंगे।

कैसे करेगा काम?

  • शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि हाल में जो कई शोध हुए हैं, उनमें आशंका जताई गई है कि मल और मूत्र के जरिये जब यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के शरीर से बाहर निकल जाता है तो इसके बाद भी कई दिनों तक इसका जिंदा रहना मुमकिन है।
  • शोधकर्ताओं ने जो यह पेपर आधारित टेस्टिंग किट बनाई है, इसमें गंदे पानी के नमूनों से वायरस को अपने साथ ले जाने वाली चीजों को अलग कर पाना संभव होगा, जिनकी एक जैव रसायनिक प्रतिक्रिया पहले से इसमें मौजूद उत्तेजकों के साथ कराई जायेगी और यह पता लगाया जायेगा कि इसमें कोरोना वायरस की मौजूदगी है या नहीं।

बिना मशीन दे सकता है रिजल्ट

  • इस अध्ययन की सबसे बड़ी खासियत है कि इसके रिजल्ट को देखने के लिए किसी भी तरह के मशीन की आवश्यकता नहीं होगी। जी हां, पेपर पर ही इसे देखा जाना संभव है।
  • जहां हरे रंग का गोला बनने पर यह रिजल्ट को पाॅजीटिव दिखाता है, वहीं यदि यह गोला नीले रंग का बनता है तो यह फिर निगेटिव रिजल्ट को दर्शाता है।
  • इसे एक ऐसी उपकरण के तौर पर भी इस्तेमाल में लाने लायक बनाया जा सकता है, जिसे कहीं भी आसानी से लेकर जाया जा सकता है।
  • इससे स्थानीय स्तर पर जैसे कि स्लम व गंदी बस्तियों जैसे इलाकों में वायरस के संक्रमण का पता लगाने और बड़े पैमाने पर इसे रोकने में मदद मिल सकती है।

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