पढ़ें, क्या वायु प्रदूषण के कारण अधिक जानलेवा बन गया है कोरोना वायरस?
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कोरोना क्विक अपडेट

  • स्वास्थ्य मंत्रालय के 15 मई 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अभी कोरोना के 3673802 एक्टिव केस हैं, 20432898 लोग ठीक हो चुके हैं और 266207 की मृत्यु हो चुकी है।
  • वेबसाइट वर्ल्डमीटर्स.इनफो के मुताबिक, भारत कोरोना से मृत्यु के मामले में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना से पूरी दुनिया में अब तक 16,15,13,458 लोग संक्रमित हुए हैं और 33,52,109 लोग दम तोड़ चुके हैं।
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Does nitrogen dioxide impact fatalities due to Corona virus?

क्या कोविड-19 से होने वाली बहुत सी मौतों के लिए हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड (nitrogen dioxide) की अधिक मात्रा जिम्मेदार है? मार्टिन लूथर यूनिवर्सिटी (Martin Luther University Halle-Wittenberg – MLU) की ओर से इस पर एक अध्ययन किया गया है, जिसमें ठोस आंकड़े उपलब्ध कराकर इस दावे की पुष्टि की गई है।

इस अध्ययन में सेटेलाइट द्वारा वायु प्रदूषण के साथ हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड संबंधी आंकड़े एवं COVID-19 की वजह से हुई आधिकारिक मौतों को मिलाकर यह पाया गया है कि जिन क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत अधिक है, वहां अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कोरोना संक्रमण की वजह से मरने वालों की तादाद अधिक है। साइंस ऑफ द टोटल इन्वाॅयरमेंट जर्नल (Science of the Total Environment) में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है।

श्वसन तंत्र पर असर

हवा में जो नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड के कण होते हैं, वे इंसानों के श्वसन तंत्र को क्षतिग्रस्त कर देते हैं। कई वर्षों से इंसानों में सांस संबंधी कई बीमारियों और कई प्रकार की दिल की बीमारियों के लिए इन्हें जिम्मेदार माना जा रहा है।

MLU में इंस्टीट्यूट ऑफ जियो साइंसेज एंड जियोग्राफी (Institute of Geosciences and Geography) के डाॅ यरोन ओगेन (Dr. Yaron Ogen) का कहना है कि कोरोना वायरस भी श्वसन तंत्र को ही प्रभावित करता है। ऐसे में इस बात का अनुमान लगाना स्वाभाविक है कि वायु प्रदूषण और COVID-19 की वजह से होने वाली मौतों के बीच संबंध हो सकता है। हालांकि, अब भी इस बात की पुष्टि के लिए शोधकर्ताओं को और पुख्ता आंकड़ों की जरूरत है।

ऐसे किया अध्ययन

अपने इस अध्ययन में तीन तरह के डाटा का इस्तेमाल अध्ययनकर्ताओं ने किया है। एक तो क्षेत्रीय आधार पर वायु में नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड के प्रदूषण को मापने वाले वे आंकड़े शामिल हैं, जिनकी माप धरती पर वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाली यूरोपियन स्पेस एजेंसी (European Space Agency – ESA) के सेंटिनल 5पी सैटेलाइट (Sentinel 5P satellite) से की गई है।

इस डाटा के आधार पर अध्ययनकर्ताओं ने सबसे अधिक नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड वाले क्षेत्रों में प्रदूषण का अवलोकन किया। ओगेन ने बताया कि यूरोप के क्षेत्रों में मैंने कोरोना वायरस के फैलाव के पहले इसी साल जनवरी और फरवरी में डाटा का विश्लेषण किया। वर्टिकल एयर फ्लो पर अमेरिकी मौसम एजेंसी (US weather agency NOAA) से मिले डाटा को इन्होंने मिला दिया।

उनके मुताबिक हवा यदि गति में हो तो जमीन के निकट जो प्रदूषक मौजूद होते हैं वे भी उसमें मिल जाते हैं। हालांकि, हवा यदि जमीन के नजदीक रहे तो हवा में मौजूद प्रदूषक लोगों द्वारा ज्यादा सांस के जरिये शरीर में ले लिये जाते हैं, जिनसे सेहत संबंधी परेशानियां पैदा हो जाती हैं। इस आंकड़े को आधार बनाकर शोधकर्ताओं ने धरती पर उन हाॅटस्पाॅट की तलाश की, जहां वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक हो और हवा का मूवमेंट निचले स्तर पर हो।

मौत के आंकड़ों से तुलना

इसके बाद उन्होंने कोविड-19 की वजह से होने वाली मौतों के आंकड़े की तुलना की। विशेषकर इटली, फ्रांस, स्पेन और जर्मनी के आंकड़ों की। उन्होंने पाया कि जिन क्षेत्रों में मरने वालों की तादाद अधिक थी, वहां नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड का स्तर भी अधिक था। ओगेन बताते हैं कि जब हम उत्तरी इटली, मैड्रिड के आसपास के इलाके और चीन के हुबेई प्रांत पर नजर डालते हैं, तो देखते हैं कि इन सबमें एक चीज काॅमन है। ये सभी पहाड़ों से घिरे हुए हैं। इससे इन इलाकों में हवा स्थिर रहती है, जिससे कि प्रदूषण का स्तर ऊंचा रहता है। ओगेन के अनुसार इस विश्लेषण की खास बात यह है कि यह हर क्षेत्र पर आधारित है और यह देशों की तुलना नहीं करता है। यदि हम हर देश के औसत प्रदूषण का पता लगा भी लें तो उसके अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार इसमें अंतर आ ही जाता है। ऐसे में इस पर यकीन नहीं किया जा सकता।

प्रभावित हुई लोगों की सेहत

भूवैज्ञानिकों को आशंका है कि इन सभी प्रभावित इलाकों में जो प्रदूषण का स्तर स्थिर है, उसकी वजह से यहां रहने वाले लोगों की सेहत प्रभावित हुई है। ऐसे में इस वायरस के प्रति वे और संवेदनशील हो गये हैं। ओगेन बताते हैं कि भले ही इस विषय पर उनका शोध केवल इशारा करता है कि वायु प्रदूषण के स्तर, हवा के बहाव और कोरोना वायरस के संक्रमण की भयावहता के बीच कोई संबंध हो सकता है, लेकिन अन्य इलाकों में भी इस संबंध की जांच की जानी चाहिए और बड़े परिदृश्य में इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए।

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