भयावह रूप ले चुका है कोरोना, आइए समझते हैं अपनी हिफ़ाज़त का पूरा प्लान!
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कोरोना क्विक अपडेट

  • स्वास्थ्य मंत्रालय के 15 मई 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अभी कोरोना के 3673802 एक्टिव केस हैं, 20432898 लोग ठीक हो चुके हैं और 266207 की मृत्यु हो चुकी है।
  • वेबसाइट वर्ल्डमीटर्स.इनफो के मुताबिक, भारत कोरोना से मृत्यु के मामले में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना से पूरी दुनिया में अब तक 16,15,13,458 लोग संक्रमित हुए हैं और 33,52,109 लोग दम तोड़ चुके हैं।
  • कोरोना के बारे में अफवाहों से बचने और पल-पल की सही जानकारी व ख़बरें प्राप्त करने के लिए जुड़े रहें https://tanman.org/ के साथ।

Just concentrate on protecting yourself from COVID-19 : Abhiranjan Kumar

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


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कोविड-19 महामारी भयावह रूप ले चुकी है। सच्चाई वह नहीं है, जो आपको बताई जा रही है।

दिल्ली में अस्पतालों में बेड की कमी हो रही है और दाखिला न मिल पाने से भी कुछ लोगों की मौत की जानकारी सामने आई है। कई लोगों की तो जांच तक नहीं हो पा रही। घर में क्वारन्टीन रहते हुए भी लोग दम तोड़ने लगे हैं। मुंबई के हालात पहले से ही बुरे हैं। धीरे-धीरे देश के दूसरे कई हिस्सों में भी ऐसी ही परिस्थितियां बनती जा रही हैं या बनने वाली हैं।

पहले तो बिना संक्रमण के भी लोगों को पकड़-पकड़ कर सरकारी सिस्टम में क्वारन्टीन किया जा रहा था। अब संक्रमण के बावजूद घर में रहने को कहा जा रहा है। तो चीज़ें अपने आप में स्पष्ट हैं। जब मेनस्ट्रीम मीडिया विज्ञापन की घूस खाकर देश का ध्यान भटकाने में लगा हो, और सोशल मीडिया पर भी प्रोपगंडा तंत्र ही हावी है, तो हम जैसे लोगों के लिए यह संभव नहीं है कि देश को आगाह न करें और ऐसे जताएं जैसे देश में सब कुछ ठीक है और आगे भी ठीक रहने वाला है।

इसलिए कृपया कुछ महीने चिरकुट राजनीति से दूर रहें!

सच यह है कि सरकारें कोरोना के आगे आत्मसमर्पण कर चुकी हैं और अब उन्हें आपकी जान की परवाह नहीं है। इसीलिए मैंने कहा था कि कुछ महीनों के लिए आप लोग मोदी-राहुल ब्लेमगेम टाइप चिरकुट राजनीति से दूर रहिए और अपनी-अपनी जान बचाइए। जो लोग मारे जाएंगे, वे न लौटकर राजनीति कर पाएंगे, न लौटकर अर्थव्यवस्था को गति दे पाएंगे। राजनीति करने और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आपका ज़िंदा रहना ज़रूरी है।

1% लोगों के फायदे वाली इकोनॉमी के लिए कृपया जान न दें!

जिस इकोनॉमी की आप लोग बात कर रहे हैं, उसमें एक प्रतिशत लोग राज करते हैं, 20 प्रतिशत लोग उपभोक्तावादी जीवन जीते हैं और 79% लोग गंदगी, गरीबी और जहालत में जीते हैं। इसलिए जो लोग आज इकोनॉमी बचाने की बात कर रहे हैं, वे केवल एक प्रतिशत लोगों के मतलब की बात कर रहे हैं। जो सोच रहे हैं कि लोग संक्रमित होते रहेंगे और अर्थव्यवस्था चलती रहेगी, वे मूर्ख नहीं, महामूर्ख हैं। प्रधानमंत्री का शुरुआती स्टैंड सही था- “जान है तो जहान है” वाला। लोगों की जान बचाइए। अर्थव्यवस्था भी तभी बचेगी।

कौन जी सकता है कोरोना के साथ?

जो लोग कह रहे हैं कि कोरोना के साथ जीने का जज्बा पैदा करना होगा, उन्हें बताना चाहिए कि क्या वे जी सकते हैं कोरोना के साथ? जिन गरीबों की आड़ लेकर यह बात कही जा रही है, क्या वे गरीब जी सकते हैं कोरोना के साथ? जब अस्पताल मरीजों को दाखिला देने से मना करने लगें, जब सभी मरीजों की जांच कराई जानी संभव न रह जाए, जब परिवार के एक व्यक्ति से अन्य सारे लोग भी संक्रमित होने लग जाएं, जब जवान बेटे के संक्रमण से बूढे मां-बाप की जान पर बन आए, जब तक कि बीमारी का इलाज आया न हो, तब तक कौन-कौन जी सकता है कोरोना के साथ? इसका जवाब मुझे मिला नहीं है अभी तक।

भारत में हो सकते हैं दुनिया में सबसे बुरे हालात!

भारत में अमेरिका, इटली, ब्रिटेन, स्पेन, रूस से ज़्यादा बुरे हालात होने वाले हैं। वो दिन दूर नहीं, जब भारत और ब्राज़ील में कोरोना की रेस लगी होगी और हमारी असहाय सरकारें आंकड़ों में हेरफेर करके सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रही होंगी। अंत में हो सकता है कि भारत की स्थिति ब्राजील से भी बुरी रहे, क्योंकि ब्राजील की आबादी 21 करोड़ और भारत की आबादी 137 करोड़ है।

भारत में स्थिति कुछ ठीक होने का भ्रम आपको केवल चार कारणों से हो रहा है।

  • एक- कोरोना यहां देर से आया।
  • दो- लॉकडाउन की आंशिक सफलता ने शुरू में इसकी रफ्तार को कुछ धीमा कर दिया था।
  • तीन- गंदगी, गरीबी और गर्म जलवायु में जीने के अभ्यस्त और कुछ मात्रा में आयुर्वेद पर निर्भरता के कारण हमारे लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता संभवतः कुछ बेहतर है, जिसके कारण मृत्यु दर कुछ कम है।
  • चार- हमारे यहां के आंकड़े उतने विश्वसनीय नहीं हैं, जितने अमेरिका, इटली, स्पेन, ब्रिटेन, रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि विकसित देशों के हैं। ऐसा निष्कर्ष मैंने कई सारे फैक्टर्स का विश्लेषण करके निकाला है। विस्तार से बचने के लिए उनका ज़िक्र यहां नहीं कर रहा हूं।

ज़िंदा रहेंगे तो अपराधी भी आपके सामने नाक रगड़कर वोट मांगेंगे!

कड़वा बोलने के कारण मैं पहले ही बहुत बदनाम हूँ। लेकिन बदनामी के डर से सच बोलना और अपने लोगों को समय रहते आगाह करना कैसे छोड़ दूं? इसीलिए कह रहा हूं कि अब भी संभल जाइए। अगर सरकारों ने अपनी नीतियों में आवश्यक संशोधन नहीं किया, तो अंतिम परिणाम यह निकलने वाला है कि दुनिया में सबसे ज्यादा लोग भारत में मारे जाएंगे। इसलिए इस वक्त केवल और केवल अपनी और अपने लोगों की हिफाजत के बारे में सोचें।

जीवित रहेंगे, तो अपराधी भी आपके दरवाज़े पर नाक रगड़कर आपसे वोटों की भीख मांगने आएंगे। गुज़र जाएंगे तो शरीफ लोग भी आंसू नहीं बहाएंगे और सरकारों को तो फ़र्क़ पड़ने से रहा!

अनिवार्य सेवाओं से नहीं जुड़े हैं तो चुपचाप घर बैठिए

आप समझ रहे हैं कि क्या कह रहा हूँ? यदि हाँ, तो यदि आप अनिवार्य और जीवनरक्षक सेवाओं से जुड़े हुए नहीं हैं, तो चुपचाप घर बैठिए। भले चार महीने बैठना पड़े या छह महीना, लेकिन घर बैठिए। अनावश्यक बाहर निकलते रहेंगे तो मास्क, सेनेटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग भी आपको बचा पाएंगे, इस बात की संभावना अब कम दिखाई दे रही है।

जो नौकरीपेशा लोग अनिवार्य और जीवनरक्षक सेवाओं से नहीं जुड़े हैं और जिन्हें वर्क फ्रॉम होम की सुविधा भी नहीं मिल पा रही, उनके साथ घर में रहने में कुछ दिक्कतें ज़रूर हैं। ऐसे में उन्हें यह देखना है कि क्या उनसे सुरक्षित माहौल में काम कराया जा रहा है? यदि नहीं, तो फिर उन्हें यह देखना है कि अगर काम करते हुए वे बीमार पड़ गए और उनके परिवार में संकट आ गया, तो क्या उनका संस्थान चिकित्सा सहायता और आर्थिक सहायता सहित हर तरह से उनकी सहायता करेगा या नहीं? यदि यह भी नहीं, तो फिर केवल इतना सोचिए कि अगर आपको अपनी जान और नौकरी- दो में से कोई एक चीज़ बचानी हो, तो आप क्या बचाना चाहेंगे?

विलासिता के खर्चे बंद कर दीजिए, स्कूल फीस की चिंता भी मत कीजिए

घर बैठेंगे और घर रहकर काम करना संभव नहीं हुआ या नौकरी चली गई या छोड़नी पड़ी, तो आमदनी प्रभावित हो सकती है। इससे निपटने के लिए विलासिता के सारे खर्चे बंद कर दीजिए।

यहां तक कि छोटे बच्चों की स्कूल फीस के बारे में भी सोचना बंद कर दीजिए, अगर वे लुटेरे स्कूलों में पढ़ते हैं और फीस चुकाने की आपकी क्षमता नहीं है तो। अगर एक साल के लिए आपके छोटे बच्चे लुटेरे स्कूलों की उपभोक्तावादी शिक्षा से महरूम भी रह जाएंगे, तो न तो वे अनपढ़ रह जाएंगे, न ही उनका करियर चौपट हो जाएगा। हममें से ज्यादातर ने अपने करियर में कभी न कभी ड्रॉप किया है। इसके लिए अभिभावकों के मन में अपराध-बोध नहीं होना चाहिए। खुद मुझे इंटरमीडिएट के बाद एक साल ड्रॉप होना पड़ा था, फिर भी बीएचयू और आईआईएमसी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से सर्वोच्च स्थान सहित शिक्षा प्राप्त करके आपके सामने हूं।

मनुष्य जीवन 100 साल लंबा होता है, उसमें एक साल की सफलता, विफलता, सक्रियता, निष्क्रियता खास मायने नहीं रखती। यह बात आपको कोई माफिया नहीं बताएगा, केवल मेरे जैसा भाई ही बता सकता है, जिसके दिल में आपके और आपके बच्चों के लिए दर्द है।

हां, यह भी मैं ज़रूर कहूंगा कि यदि आप आमदनी के उतार-चढ़ाव से गुज़रते रहते हैं और केवल दिखावे के लिए अथवा सामाजिक दबाव महसूस करते हुए अथवा इस मिथ्या परसेप्शन का शिकार होकर कि लुटेरे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे जीवन में बेहतर करते हैं, अपने बच्चों को लुटेरे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं और जान को सांसत में फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं, तो संगठित होइए और सरकारों पर दबाव बनाइए कि वे सरकारी स्कूलों की दशा सुधारें। याद रखिए, सरकारी स्कूल आपकी संपत्ति हैं। अपनी संपत्ति पर हक छोड़कर यदि आप माफिया के शोषण का शिकार बन रहे हैं, तो आप अपने नागरिक धर्म का निर्वाह नहीं कर रहे हैं।

केवल जीवनरक्षक वस्तुओं पर खर्च कीजिए, लड़ाई लंबी चलेगी

तो आज से आप केवल यह सोचिए कि अगले कुछ महीने घर में आटा, चावल, दाल, नमक, तेल, आलू, प्याज, पानी, दूध, दवा का इंतज़ाम कैसे रहे।

जो किराये पर हैं, उन्हें किराये के बारे में भी सोचना होगा, क्योंकि सरकार इसमें शायद ही आपको राहत दिला सके, लेकिन मकान मालिक से बात करके आप उन्हें किराया कम करने या कुछ महीने रुककर लेने के लिए तैयार कर सकते हैं।

जिन लोगों का बैंक लोन चल रहा है, अगर उनके अकाउंट में पैसे नहीं हैं, आमदनी नहीं हो रही है या नौकरी चली गई है, तो कोई भी बैंक इन महीनों में आपको ईएमआई चुकाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। इसलिए तनाव मत पालिए। जब यह संकट टलेगा तो बैंक लोन ईमानदारी से चुका देना। आप वैसा मत करना, जैसा विजय माल्या और दूसरे बेईमान नेताओं और पूंजीपतियों ने किया। आम आदमी की ईमानदारी पर कभी कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगना चाहिए।

इन खर्चों के अलावा अन्य सारे खर्चे बंद कर दीजिए और मस्त रहिए। सरकारों ने आपका घर लूटने और आपकी ज़िंदगियां तबाह करने के लिए दारू की जो दुकानें खुलवाई हैं, वहां तो भूल से भी न जाएं।

अभी यह लड़ाई लंबी चलने वाली है, तब तक, जब तक कि इसके लिए कोई कारगर दवा या वैक्सीन नहीं आ जाती और बाज़ार में उसकी प्रचुर मात्रा में उपलब्धता नहीं हो जाती। इसलिए आपकी तैयारी पूरी और पुख्ता होनी चाहिए। धन्यवाद।



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