इस शास्त्रार्थ से समझिए कर्म बड़ा या भाग्य?
कृपया शेयर करें ताकि अधिक लोग लाभ उठा सकें

Which is greater Karma or Fate?

वरिष्ठ लेखक, पत्रकार और मानवतावादी चिंतक अभिरंजन कुमार ने लोगों को कोरोना से बचने के लिए ज़रूरी सावधानियां बरतने की नसीहत देते हुए फेसबुक पर नसीब (भाग्य) की महत्ता को बताता एक पोस्ट लिखा। फिर क्या था, अनेक लोगों ने उनसे शास्त्रार्थ करना शुरू कर दिया और एक दिलचस्प सिलसिला कायम हो गया। हम आपके लिए अभिरंजन कुमार की पूरी पोस्ट और उसपर हुई बहस यहां ज्यों की त्यों रख रहे हैं।

अभिरंजन कुमार का मूल पोस्ट-

“सारा खेल नसीब का है।

एक आदमी दस, बीस, पचास मर्डर, रेप, अपहरण, लूट करके भी बच जाता है और देश की संसद और विधानसभाओं में पहुंचकर भारत भाग्यविधाता बन जाता है। दूसरा आदमी पेट की भूख से मजबूर होकर आलू चुराता हुआ पकड़ लिया जाता है, भीड़ के हत्थे चढ़ जाता है और पीट पीटकर मार डाला जाता है।

अपने इर्द गिर्द आप देख सकते हैं कि कितने अपराधी आपके कर्णधार बन चुके हैं और कितने शरीफ लोग धूल में मिल चुके हैं। इस प्रकार देखें तो पाप-पुण्य जैसा कुछ इस धरती पर एक्जिस्ट नहीं करता और सब कुछ केवल नसीब का खेल है।

कितने मेहनती प्रतिभाशाली लोग अपनी बदनसीबी के कारण नष्ट हो गए और कितने अयोग्य निकम्मे लोग अपने नसीब के कारण राज कर रहे हैं। इसलिए नसीब तो है, लेकिन वह मैनेज करने योग्य नहीं है। मतलब, कि वह जो है सो है। उसे पंडित मुल्लों पादरियों ग्रंथियों के द्वारा बदला नहीं जा सकता। उसे आप अंगूठियों, रत्नों, मालाओं, भभूतों, भस्मों, प्रसादों इत्यादि के ज़रिए भी नहीं बदल सकते। उसे पहले जानना भी संभव नहीं।

यह प्रवचन आज इसलिए दिया, क्योंकि जीवन और मृत्यु भी नसीब द्वारा संचालित है।

अभी कोरोना काल में एक आदमी ऐसा हो सकता है, जो पहले की तरह नॉर्मल लाइफ जीते हुए भी संक्रमण से बचा रहे। और एक बदनसीब ऐसा भी हो सकता है, जो तमाम तपस्याएं और परहेज करके भी महज एकाध छोटी मोटी असावधानियों, जो किसी मजबूरी का भी परिणाम हो सकती हैं, के कारण संक्रमित हो जाए।

इसी तरह एक आदमी ऐसा हो सकता है, जिसे संक्रमित होने के बावजूद सारी चिकित्सा सहायताएं उचित ढंग से मिलती चली जाएं और बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होने या कमज़ोर इम्युनिटी के बावजूद वह बच जाए। दूसरी तरफ एक बदनसीब ऐसा भी हो सकता है, जिसे संक्रमित होने के बावजूद ठीक तो किया जा सकता है, लेकिन उचित चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाने के कारण उसकी जान चली जाए।

मतलब यह, कि अगर आपको अपने नसीब पर ऐसा पक्का भरोसा है कि वह आपको कभी धोखा नहीं दे सकता, तो आप स्पेशल केस हैं, लेकिन अगर आपको लगता है कि अक्सर नसीब आपको धोखा दे जाती है तो कोरोना से बचने के लिए जितनी अधिक सावधानी बरत सकते हैं, बरतें, क्योंकि इसके अलावा आपके पास कोई दूसरा चारा नहीं है। धन्यवाद।”

अभिरंजन कुमार के पोस्ट पर हुई बहस

Mani Kant Azad :- नसीब यानि भाग्यवाद?

अभिरंजन कुमार :- Mani Kant Azad भाग्य तो है। पुरुषार्थी लोग इसे नकारने का प्रयास करते हैं। भाग्य भरोसे बैठना उचित भी नहीं। अपने कर्म तो करने ही चाहिए। लेकिन भाग्य तो है। यह 20 साल की उम्र में समझ नहीं आता। 40 साल तक आते आते समझ में आने लगता है। भाग्य ने जिनका लगातार साथ दिया है, उन्हें ऐसा लग सकता है कि सब कुछ उन्हें अपनी योग्यता, मेहनत और पुरुषार्थ से मिला है, लेकिन यह अर्धसत्य है। कितने बच्चे गड्ढे में गिरकर मर गए, लेकिन जब प्रिंस गड्ढे में गिरा तो देश का चहेता बनकर निकला और उसके परिवार की गरीबी दूर हो चुकी थी।

यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूं कि भाग्यवादी होना एक बात है और भाग्य के अस्तित्व को नकारना दूसरी बात है। मैं बुनियादी तौर पर भाग्यवादी नहीं हूँ, लेकिन भाग्य के अस्तित्व को नकारता भी नहीं हूँ। शुक्रिया।

Rajnish Kumar :- नसीब या भाग्य कोई अलौकिक चीज नहीं, वह हमारे पूर्व में किए गए संचित कर्मों का ही फल है। कोई भी कर्म तुरन्त फलित हो यह जरूरी नहीं, ठीक वैसे ही जैसे हम अपने महीने की कमाई का कुछ हिस्सा भविष्य के लिए संचित रखते हैं, ईश्वर भी हमारे हर कर्म का फल तुरन्त नहीं देता। अब इस संचित धन या कर्म को भाग्य कहें या पूर्व किए कर्मों का फल, किन्तु इसका मूल तो कर्मवाद ही है।

अभिरंजन कुमार :- Rajnish Kumar यह मन को बहलाने की चीज़ है। जो है, यही जीवन है। एक जीवन के बाद दूसरा जीवन मिलता है और एक जीवन का फल दूसरे जीवन में मिलता है, इसे कोई माई का लाल आज तक प्रमाणित नहीं कर सका। ईश्वर के अस्तित्व को मैं नकारता नहीं, लेकिन उसे राम, कृष्ण, अल्लाह, जीसस में ढूंढना महामूर्खता है। ईश्वर एक ही है, और वह है- समय। यह केवल और केवल समय ही है, जो अथाह है, अछोर है, अजन्मा है, अविनाशी है, अनंत है, निरंतर है, पूरे ब्रह्मांड को नियंत्रित और संचालित करता है। इसकी गति को न तो आज तक कोई रोक पाया है, न बदल पाया है। समय ही ईश्वर है, जो हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सबके लिए समान है। बाकी सारे ईश्वर मानवनिर्मित हैं और धंधेबाजों के ढकोसले हैं। शुक्रिया।

Rabindra Nath Choubey :- वाह। मुझे प्रसन्नता है कि आज यह आपको समझ में आया।मेरे पिताजी से कहते थे कि भाग्यम फलति। मैं भी पिछले पंद्रह सालों से यह समझ गया और इस सत्य को बराबर सत्य होते देखता हूं। लाखों करोड़ों उदाहरण हैं। विशेषकर पद, पैदा और यश तो भाग्य से ही मिलता है। मिहनत से साधारण रोटी कपड़ा मिल पाता है।

इस संबंध में एक बड़ी प्रसिद्ध कहानी है कि एक सेब के बगीचे के मालिक ने अपने मैनेजर से कहा कि आज 8 बजे सुबह बगीचे में काम के लिए कुछ मजदूर ला दो। मजदूर आ गए और दिन भर की मजदूरी तय हो गई शाम 4 बजे तक काम करने की। बगीचे का मालिक 12 बजे आया और काम देखा तो मैनेजर से कहा कि और कुछ मजदूर लाओ। और मजदूर लाये गए। फिर 2 बजे मालिक आया तो मैनेजर से बोला कि और कुछ मजदूर लाओ। फिर दो बजे से कुछ मजदूर लाए गए। 4 बजे छुट्टी के समय बगीचे के मालिक ने जो सुबह वाले मजदूरों के लिए तय था, उतनी मजदूरी सभी मजदूरों को दे दी। सुबह 8 बजे आने वाले मजदूरों को खराब लगा और अपनी नाराज़गी मालिक से बताया। बगीचे के मालिक ने कहा कि जो मजदूरी सुबह तय हुई थी, वह आपको मिल गई न। बाकी वालों को देना मेरी मर्जी है। मेरा पैसा है, हम जिसे भी दें। सुबह वाले मजदूर सुनकर चुप हो गए।यही भाग्य हर समय ऐसे करता रहता है। यही सत्य है।

अभिरंजन कुमार :- Rabindra Nath Choubey समझ तो पहले से रहा हूँ, लेकिन इस पर लिखने से परहेज करता हूँ कि लोग कर्म को छोटा मानकर भाग्यवादी न हो जाएं। मनुष्य को अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए। भाग्य उसके हाथ में नहीं है, न उसे बदला, सुधारा या नियंत्रित किया जा सकता है।

अभिरंजन कुमार का पूरा पोस्ट आप यहां देख सकते हैं-



error: Content is protected !!