महाभारत का ये वीर योद्धा दो माताओं से आधा-आधा हुआ था पैदा
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This warrior of the Mahabharata was born in two separate parts from two mothers

जब हम महाभारत (the Mahabharata) की कहानी पढ़ते हैं तो हमें इसमें एक से बढ़कर एक योद्धाओं के बारे में पढ़ने को मिलता है। इन्हीं में से एक कहानी जरासंध (Jarasandh) के वध को लेकर भी है। जरासंध दरअसल मगध (Magadh) का सम्राट हुआ करता था। वही मगध है जो आज बिहार में स्थित है। राजगीर (Rajgir) में जरासंध का एक मंदिर भी बना हुआ है।

जरासंध के बारे में पढ़ने को मिलता है कि वह इतना क्रूर और निर्दयी शासक था कि वह हराने वाले राजाओं को पहाड़ी पर स्थित अपने किले में बंदी बना लेता था और उन पर तरह-तरह के अत्याचार करने के बाद उनका वध कर देता था। जरासंध की कहानी यहां हम आपको बता रहे हैं।

राजा बृहद्रथ की चाहत

मगध में बृहद्रथ (Brihdrath) नामक एक राजा का शासन हुआ करता था। उन्हें पुत्र की चाहत थी। इसलिए उन्होंने दो विवाह कर लिए थे। इसके बाद भी जब उन्हें संतान का सुख नहीं मिल पाया तो वे महर्षि चंडकौशिक (Chandkaushik) के आश्रम पहुंच गए। वहां उन्होंने जमकर उनकी सेवा की। इससे महर्षि चंडकौशिक प्रसन्न हो गए और उन्हें एक फल देकर कहा कि यह फल तुम अपनी पत्नी को खिला देना। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाएगी।

फल की प्राप्ति

महाराज ने उस फल को दो भाग में काटकर अपनी दोनों रानियों को एक-एक टुकड़ा खाने के लिए दे दिया। इससे दोनों रानियों के गर्भ से बालक का जन्म तो हुआ, लेकिन दोनों ही गर्भ से निकले बालक अलग-अलग दो हिस्से में थे। ऐसे में दोनों रानियों ने इन दो हिस्सों को खिड़की से बाहर फेंक दिया।

जरा की भूमिका

उस वक्त वहां से जरा (Jara) नामक एक राक्षसी गुजर रही थी, जिसने दोनों हिस्सों को अपनी माया से जोड़ दिया। इस तरह से बालक एक हो गया। उसने रोना शुरू कर दिया। उसका रोना सुनकर राजा दोनों रानियों के साथ बाहर आ गए, जिसके बाद जरा ने सारी बात उन्हें बता दी। इससे खुश होकर महाराज बृहद्रथ ने इस बालक का नाम जरासंध रख दिया, क्योंकि जरा ने ही उसके दोनों हिस्सों को जोड़ा था।

कंस से नाता

जरासंध की बेटी का विवाह कृष्ण (Krishna) के मामा कंस (Kansa) से हुआ था। इस तरह से जरासंध कंस का ससुर भी था। जब जरासंध के अत्याचार कुछ ज्यादा ही बढ़ गए, तब भगवान श्रीकृष्ण ब्रह्मण के वेश में जरासंध के दरबार पहुंच गए। उनके साथ पांडव भी थे। भगवान श्री कृष्ण को देखकर जरासंध को यह समझ आ गया कि यह कोई ब्राम्हण नहीं हैं। परिचय पूछने पर श्री कृष्ण ने अपना असली परिचय दे दिया। तभी भीम ने जरासंध को मल्ल युद्ध के लिए ललकारा। दोनों ही युद्ध में एक दूसरे पर भारी थे, लेकिन ना कोई हार रहा था और ना कोई जीत रहा था।

दो हिस्सों में अंत

युद्ध के दौरान भीम ने जरासंध को दो हिस्सों में बांट दिया, लेकिन दोनों टुकड़े आपस में मिल जाते थे। 13 दिनों के युद्ध के बाद अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने दोनों हिस्सों को विपरीत दिशाओं में फेंकने का भीम को इशारा किया। इस बार भीम ने जरासंध को दो टुकड़ों में फाड़कर विपरीत दिशाओं में फेंक दिया, जिससे वे दुबारा आपस में नहीं जुड़ पाए और इस तरह से जरासंध की मृत्यु हो गई। राजगीर में जिस स्थान पर भीम और जरासंध के बीच युद्ध हुआ था, वहां पर इन दोनों के पैरों के निशान आज भी देखने को मिल जाते हैं।

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