तनिष्क का विरोध और एक टांग वाली धर्मनिरपेक्षता!
कृपया शेयर करें ताकि अधिक लोग लाभ उठा सकें

Protest to Tanishq and one-legged secularism!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


तनिष्क के विज्ञापन पर लोगों को शायद दिक्कत नहीं होती, यदि समाज में मुस्लिम लड़कियों की हिन्दू लड़कों से शादी भी उतनी ही आम होती, जितनी आम हिंदू लड़कियों की मुस्लिम लड़कों से शादी हो गई है।

लेकिन मुस्लिम समाज इतना खुला और सहिष्णु नहीं है। उसे हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन करके अपने घर की बहू बनाना तो बहुत अच्छा लगता है, लेकिन अपनी लड़कियों को वह हिंदू लड़कों से शादी करते नहीं देखना चाहता।

देखा तो यहां तक गया है कि अपनी लड़कियों के मामले में देश के कानून, संविधान और मानवता को सूली पर चढ़ाते हुए अक्सर वह हिंदू लड़कों की हत्या कर देता है। हाल में भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जो मुस्लिम समाज की इस अमानवीय, साम्प्रदायिक और गैरकानूनी सोच पर सवाल खड़े करती हैं।

हैरानी की बात है कि फिल्मों, विज्ञापनों और किस्से कहानियों तक में अधिकांशतः हिंदू लड़कियों और मुस्लिम लड़कों की शादियां ही दिखाई जाती हैं। मुझे लगता है कि यह एकतरफा स्थिति ही फिलहाल हिंदू समाज के गुस्से का कारण है।

शायद मुस्लिम समुदाय के आक्रामक विरोध की कल्पना से लेखक, फिल्मकार और कलाकार भी सिहर जाते होंगे, जिस कारण उन्होंने अपनी एक आंख फोड़ ली है और अब वे केवल एक आंख से ही देखने वाले काने कलाकार बन गए हैं।

यहां गौरतलब है कि मैं स्वयं ऐसी अनेक अंतर्धार्मिक शादियों में शरीक हुआ हूं, जिनमें लड़की हिंदू थी, लेकिन ऐसी मात्र एक शादी में शरीक होने के लिए आज तक तरस रहा हूं, जिसमें लड़की मुस्लिम हो।

इसका मतलब यह हुआ कि अगर अलग-अलग सम्प्रदायों के दो वयस्क लड़के-लड़कियां शादी करने का फैसला करते हैं, तो कानून, संविधान, नागरिकों की निजता और युवक-युवतियों के सहज प्रेम का आदर करने के कारण मुझे इस बात से तो विरोध नहीं है, लेकिन मन में इतनी जिज्ञासा ज़रूर है कि मामला इतना एकतरफा क्यों है?

जब इस जिज्ञासा का संतोषजनक जवाब नहीं मिलता, तो हिंदू और ईसाई संगठनों द्वारा की जाने वाली लव जेहाद की शिकायतें राजनीतिक नहीं, बल्कि सच्ची लगने लगती हैं। वैसे यह बात सही है कि अपने पत्रकारिता के करियर में मैंने स्वयं भी लव जेहाद के सच्चे मामले देखे हुए हैं।

तो मित्रो, आप लोगों ने भारत में धर्मनिरपेक्षता की एक टांग जो तोड़ रखी है, उसकी जगह असली टांग न सही, तो लोहे-लकड़ी की टांग ही लगा दीजिए कम से कम। वरना यह एक टांग वाली धर्मनिरपेक्षता कैसे और कब तक चल पाएगी?

वैसे आप लोगों को यह सच बहुत कड़वा लगेगा कि भारत के संविधान में इस एक टांग वाली धर्मनिरपेक्षता का जन्म भी तभी हो पाया, जब परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ एक हिंदू लड़की (इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू) ने दूसरे धर्म के एक लड़के (फिरोज़ जहांगीर घैंडी / Feroz Jehangir Ghandy : Spelling source – wikipedia) से शादी कर ली।

चूंकि इस्लाम के नाम पर पूरब और पश्चिम दोनों दिशाओं में भारत से दो बड़े भूभाग अलग हो चुके थे, इसलिए शेष भारत के संविधान निर्माताओं को धर्मनिरपेक्षता की वैसी ज़रूरत महसूस नहीं हुई, जैसी अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण इंदिरा गांधी को महसूस हुई। और आप सभी जानते हैं कि भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता को मूल तत्व बनाने वाली सरकार इंदिरा गांधी की ही थी।

आप लोग सहमत हों या असहमत, लेकिन तनिष्क के विज्ञापन के विरोध की एकमात्र और मूल वजह यही है। अपने आस-पड़ोस जान-पहचान में कुछ गिनतियां करके भी आप इसकी पुष्टि कर सकते हैं।

और हमारे जो मुस्लिम दोस्त इसे पढ़ रहे हैं, उनसे विनम्र निवेदन है कि अपने सामने आईना लेकर बैठें। सोचें कि धर्म के सवाल पर आप इतने कट्टर, एकांगी और हिंसापसन्द क्यों हैं? धन्यवाद।

(अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार)

अभिरंजन कुमार के इस लेख को फेसबुक पर आप यहां देख सकते हैं-

तो दोस्तो, हमारा ये आर्टिकल आपको कैसा लगा? अपनी राय कमेंट के रूप में जरूर जाहिर करें। और अगर ये आर्टिकल आपको पसंद आया हो, तो इसे अन्य लोगों के साथ भी शेयर करें। न जाने कौन-सी जानकारी किस जरूरतमंद के काम आ जाए।


error: Content is protected !!