चीन ने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया, कृपया ऐसी अफवाहें न फैलाएं
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Abhiranjan Kumar on Indo-China tenstion

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


इस तरह की बातें आ रही हैं कि भारत-चीन एलएसी पर गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई झड़प में भारत के 20 और चीन के 43 जवान मरे। भारत के 20 जवान मरे हैं, इसकी पुष्टि तो भारत सरकार ने कर दी, लेकिन अगर चीन के भी 43 जवान मरे हैं, जिसकी पु्ष्टि चीन की सरकार कभी नहीं करेगी, तो सोचने की बात है कि चीन ने कथित रूप से भारत की 60 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब और कैसे कब्जा कर लिया?

सवाल है कि जब भारत के सैनिक चीन के ज़्यादा सैनिकों को मारने में सक्षम हुए तो वे पीछे भला क्यों हटे होंगे? इसलिए मुझे तो नहीं लगता कि चीन किसी नई ज़मीन पर कब्जा करने में कामयाब हुआ होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने भी स्पष्ट कहा है कि भारत उकसावे की किसी भी कार्रवाई का जवाब देने में सक्षम है और हमारे जवान मारते मारते मरे हैं। इसलिए जब देश का प्रधानमंत्री स्वयं इस मजबूती के साथ हमें आश्वस्त कर रहा हो, तो सरकार और सेना पर शंका करने की कोई वजह नहीं बनती।

इसलिए, चीन के साथ भारत के तनाव पर जो लोग तरह-तरह की शंकाएं और सवाल खड़े करके एक तरह से अफवाहों का बाज़ार गर्म करना चाह रहे हैं, उनकी कठोर भर्त्सना करते हुए स्पष्ट कर दूं कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े किसी भी मामले में मैं पूरी तरह से देश की सेना और सरकार के साथ खड़ा हूँ। इसमें लेखन और पत्रकारिता के मेरे सिद्धांत कहीं से भी आड़े नहीं आते हैं।

अगर अभी भाजपा की न होकर, कांग्रेस की सरकार होती, तो भी उसके साथ मैं इसी मजबूती से खड़ा होता। सरकार चाहे किसी की भी हो, राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। कोई भी सरकार ऐसे संवेदनशील मामलों में हर बात न बता सकती है, न उसे बताना चाहिए। उसकी रणनीति और भावी कदमों की भनक किसी को भी नहीं लगनी चाहिए, इसलिए यह ज़िद या तो बचकानी है या फिर शरारतपूर्ण कि हर बात हमें बताई जाए।

मुझे पूरा विश्वास है कि भारतीय सेना और सरकार इस मामले को अनुकूल तरीके से समाप्त करने में सफल सिद्ध होगी। इसलिए हम न तो सरकार को युद्ध करने के लिए प्रोवोक करेंगे, न ही उसे डिमोरलाइज करेंगे कि तुम फेल हो। मैं मानकर चलता हूँ कि देशहित में जो भी सबसे उचित होगा, सरकार वही कर रही होगी। वहाँ बैठे लोग हमारे ही प्रतिनिधि हैं, इसलिए हर बात में उनपर अविश्वास करके हम स्वयं को ही मानसिक रूप से दिवालिया सिद्ध नहीं कर सकते।

अगर मैं इस देश का एक मामूली नागरिक और पत्रकार न होकर विपक्ष का नेता होता, तो भी चीन से विवाद के मुद्दे पर न सिर्फ सेना और सरकार के साथ मज़बूती से खड़ा हो जाता, बल्कि अनुरोध करता कि यदि आवश्यक हो तो एक सिपाही की तरह मैं भी सीमा पर जाने को तैयार हूँ।

राजनीति ही करनी है तो ज़रा ढंग से करो, ताकि जनता की नज़र से मत गिरो। कहावत है कि डायन भी एक घर छोड़ देती है। तो मेरे भाई, हर वक़्त नकारात्मकता क्या ज़रूरी है? कभी तो सकारात्मक हो लो! धन्यवाद!



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