कोरोना तो फैल गया, अब कैसे बचें? आइए इसका समाधान जानते हैं…
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How to stop corona at the stage when it has already claimed 3867 lives?

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


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अब तक (24 मई सुबह 8 बजे) सरकार ने देश भर में कोरोना संक्रमण के 1,31,868 मामले कन्फर्म किये हैं। इनमें 3867 लोगों की दुखद मृत्यु हो चुकी है और 73560 लोग अभी भी संक्रमित हैं। साथ ही,

1. अलग-अलग पार्टियां विरोधी दलों की सरकारों पर आंकड़े छुपाने के आरोप भी लगा रही हैं।

2. प्रतिदिन टेस्टिंग की संख्या भी बढ़ते बढ़ते 1 लाख तक ही पहुंच पाई है।

3. व्यक्ति के संक्रमित होने के कम से कम एक हफ्ता बाद ही यह कन्फर्म हो पाता है कि व्यक्ति संक्रमित है।

4. मीडिया सामान्य वक्त की तरह रिपोर्टिंग नहीं कर पा रहा और कई लोग भी मामले छुपा रहे हैं। इसलिए माना जाना चाहिए कि हम लोगों के सामने सटीक जानकारी नहीं आ पा रही।

5. कुछ ऐसे बड़े-बूढ़े और अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोग जो अचानक स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का शिकार हो रहे हैं और चले जा रहे हैं, उनके मामलों में कई बार परिजनों को कोरोना संक्रमित होने का शक नहीं हो रहा और अगर हो भी रहा है तो अपने भीतर कोई परेशानी नहीं पाकर प्रशासन को सूचित किये बिना अंतिम संस्कार कर दे रहे हैं, ताकि उन्हें प्रशासनिक बाधाओं का सामना नहीं करना पड़े।

6. गैर लाक्षणिक संक्रमण के मामले भी काफी हैं। ऐसे में न संक्रमित लोगों को संदेह हुआ है, न उनकी जांच हो पाई है, न उनके मामले कन्फर्म हो पाए हैं।

…तो क्या भारत में अब तक 20 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं?

उपरोक्त छहों फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए यदि हम कोरोना की वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा लगाना चाहें, तो मेरे हिसाब से यह मौजूदा सरकारी आंकड़े से 15 गुणा तक अधिक हो सकती है। यूँ भी एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया में कुल संक्रमण के केवल 6% मामले ही रिपोर्ट हो पा रहे हैं या आंकड़ों में शामिल किये जा रहे हैं।

तो इसका मतलब यह हुआ कि अपुष्ट तौर पर अब तक भारत में अनुमानित 1,31,868 x 15 = 19,78,020 यानी करीब 20 लाख लोग संक्रमित हो चुके होंगे। इनमें एक्टिव मामले भी अनुमानित 73560 x 15 = 11,03,400 यानी करीब 11 लाख मामले हो सकते हैं।

अब जब हम कुल संक्रमितों के आंकड़े को 20 लाख और एक्टिव मामलों के आंकड़े को 11 लाख मानते हैं तो पता चलता है कि वस्तुस्थिति उससे कहीं अधिक गंभीर हो सकती है, जितनी हमें, आपको और सरकारों को मालूम है। और यह स्थिति इसलिए भी अधिक गंभीर हो जाती है, क्योंकि लगभग 93-94% लोगों के बारे में आपको पता ही नहीं है कि वे भी संक्रमित हैं, लेकिन उनके माध्यम से संक्रमण और फैलता जा रहा है।

कोरोना के साथ जीना पड़ेगा- यह कहना संवेदनहीनता है!

मैं यह मानता हूं कि अगर अन्य अनेक बीमारियों, दुर्घटनाओं और हत्याओं के अलग-अलग आँकड़े भी देखेंगे तो वे भी भारत जैसे विशाल जनसंख्या और सघन जनघनत्व वाले देश में काफी बड़े होंगे, लेकिन उन आंकड़ों से कोविड-19 जैसी वैश्विक संक्रामक बीमारी के आंकड़ों की तुलना इसलिए नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि अन्य मामलों में दुखद स्थितियां सिर्फ पीड़ित व्यक्तियों तक सीमित रहती हैं और अन्य मित्र, परिजन, शुभचिंतक उनकी सहायता के लिए उपलब्ध रहते हैं।

कैंसर, डायबिटीज, हार्ट, किडनी, लिवर आदि से जुड़ी गंभीर से गंभीर समस्या में भी मरीज को परिजनों की सहायता और सहानुभूति मिलती रहती है, क्योंकि इससे अन्य लोगों के बीमार होने का खतरा नहीं रहता। मरीज की मृत्यु होने की स्थिति में भी अपने लोगों के बीच सम्मानजनक रूप से उनका अंतिम संस्कार हो पाता है, लेकिन दुर्भाग्य से कोरोना की स्थिति में जहां मरीज सबसे अलग थलग हो जा रहे हैं, वहीं मृत्यु होने पर उनके अंतिम संस्कार तक में दिक्कतें आ रही हैं। और स्वभावतः कोई भी मनुष्य ऐसी बीमारी या मृत्यु नहीं चाहता, जिसमें उसके पार्थिव शरीर की मानवीय गरिमा तक न बचे।

इसलिए, मैं बार बार कह रहा हूँ कि कोरोना को हल्के में नहीं लेना पड़ेगा। इससे बचा तो जा सकता है, लेकिन इसके साथ उस तरह से जिया नहीं जा सकता, जैसे कैंसर, डायबिटीज, एड्स, हार्ट प्रॉब्लम आदि गंभीर से गंभीर बीमारियों के साथ वर्षों जिया जा सकता है। इसलिए पहले तो उन सभी लोगों को फिल्मी सरीखे ऐसे डायलॉग देना बंद करना चाहिए, जो कहते हैं कि कोरोना के साथ जीना सीखना पड़ेगा। ऐसा कहने वाले लोग वही हैं, जो अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हैं और इसलिए संवेदनहीन भी हैं।

क्या कोरोना और अर्थव्यवस्था साथ-साथ चल सकते हैं?

अब आते हैं उस असली सवाल पर, कि क्या कोरोना और अर्थव्यवस्था दोनों साथ साथ चल सकते हैं? तो इसका जवाब है- नहीं। दोनों साथ साथ तभी चल सकते हैं, जब न लोगों को अपनी जान की परवाह हो, न सरकारों को नागरिकों की जान की परवाह हो। अगर सरकार यह तय करे कि लोग मरते रहें और अर्थव्यवस्था चलती रहे और लोग भी अर्थव्यवस्था के नाम पर अपनी जान को दांव पर लगाने को तैयार हो जाएं तभी दोनों साथ साथ चल सकते हैं। लेकिन फिर आपमें लाशें गिनने और उनकी अंत्येष्टि करने तक की हिम्मत और क्षमता नहीं बचेगी। जलती चिता पर बार बालाओं का नाच कराने के लिए भीतर बहुत सारी कुटिलता और संवेदनहीनता चाहिए।

तो दूसरा सवाल है कि अगर दोनों साथ साथ नहीं चल सकते तो खोखली अर्थव्यवस्था की बुनियाद पर खड़े भारत जैसे अतिगरीब अति पिछड़े देश को क्या करना चाहिए? तो मेरी राय में पहले लोगों को बचाया जाना चाहिए, क्योंकि मरते लोगों के बीच अर्थव्यवस्था आप वैसे ही नहीं चला सकते।

इसलिए फेल हुआ लॉकडाउन

तीसरा सवाल है कि फिर लोगों को कैसे बचाया जाए, अब तो यह काफी फैल चुका है और दो महीने लंबे लॉकडाउन का लाभ भी नहीं मिल सका? तो मेरा जवाब होगा कि लॉकडाउन का लाभ इसलिए नहीं मिला, क्योंकि

1. एक तो, लॉकडाउन से पहले सचमुच हमारे नीति निर्माता इसके बाद पैदा होने वाली परिस्थितियों का सही अंदाज़ा नहीं लगा पाए, इसलिए उनकी तैयारियों में भारी कमी दिखाई दी।

2. दूसरा, जब कमियों का पता चला तो उन्हें दूर करने के सही तरीके अपनाने की बजाय लगातार लॉकडाउन को ढीला किया गया, जिससे कोरोना को और फैलने की जगह मिलती चली गई।

3. तीसरा, विपक्ष गंदी राजनीति करने लगा, सरकार दिग्भ्रमित दिखाई देने लगी और नागरिक भी नागरिक नहीं रह सके, भीड़ बन गए।

4. चौथा, कुल मिलाकर यह लॉकडाउन लॉकडाउन नहीं रहकर मज़ाक बन गया।

5. पांचवां, सोचिए कि अगर 135 करोड़ लोगों के देश में अगर केवल 10 प्रतिशत लोग भी लॉकडाउन नहीं निभा सके, वजह चाहे जो भी हो, तो 13.5 करोड़ लोगों के बीच कोरोना धीमे धीमे फैल रहा था। यह इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी आदि गंभीर रूप से प्रभावित तमाम देशों की पूरी आबादी से दोगुनी-तिगुनी बड़ी संख्या थी।

लॉकडाउन फेल हो गया तो अब क्या करें?

तो जब लॉकडाउन फेल हो गया तो अब क्या करें?

सरकार के लिए 10 सुझाव:

20 लाख करोड़ खर्च नहीं होंगे, केवल कुछ लाख करोड़ में तीन महीने में मामला निपट सकता है, यदि आप निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दें।

1. जिनको जहां जाना है, वहाँ पहुंचा दें और बता दें कि तुम्हारी इच्छा के मुताबिक तुम्हें तुम्हारी जगह पर पहुंचा दिया है, इसलिए अब कोरोना खत्म होने तक तुम यहाँ से हिल नहीं सकते। और अगर अब हिलोगे तो हिला दिये जाओगे। हमारे लोकतंत्र को अति-उदारता की जगह थोड़ी सख्ती बरतनी होगी। यह सख्ती उत्पीड़न के लिए नहीं, गैर-ज़िम्मेदार और नासमझ लोगों की जान बचाने और उन्हें कोरोना करियर बनने से रोकने के लिए बरती जाए।

2. सरकार का दावा है कि 30 करोड़ से अधिक जनधन खाते खुलने के बाद आज करीब करीब हर कमाऊ आदमी/परिवार के पास बैंक खाता है। इतना ही नहीं, ज़्यादातर पैन कार्ड धारकों के तमाम खाते आज आधार से भी लिंक्ड हैं। इसलिए कायदे से सरकार को हर कमाऊ व्यक्ति या परिवार की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा होना चाहिए। इसलिए प्लीज वोट बैंक साधने और तुष्टीकरण करने के लिए सरकारी सहायता का इस्तेमाल करके अर्थव्यवस्था का बैंड मत बजाइए। एक तारीख तय करिए और उस तारीख पर एक न्यूनतम राशि तय करिए, जिससे अगले तीन महीने जीवनरक्षक सुविधाओं का बोझ वहन किया जा सकता है। मेरी नज़र में ये जीवनरक्षक चीज़ें पांच हैं- भोजन, दूध, पानी, रसोई गैस और दवा (मास्क, सेनिटाइजर, सफ़ाई के सामान और फर्स्ट एड समेत), यदि किसी घर में कोई बुजुर्ग या बीमार हैं तो। अगर उस तारीख पर वह न्यूनतम राशि उस व्यक्ति/परिवार के बैंक खाते में उपलब्ध है तो उसे आर्थिक सहायता मत दीजिए और यदि कम है या नहीं है तो घटी हुई राशि उसके खाते में डाल दीजिए। आदेश जारी कीजिए कि इन तीन महीनों के लिए न तो मकान मालिक को किराया लेने का अधिकार होगा, न बैंकों को किश्तें लेने का, न स्कूलों को फीस लेने का। इसके अलावा, ऐसे लोग जिनके खातों में आवश्यक पैसे नहीं हैं, अगर विभिन्न अस्पतालों में उनके इलाज पर कोई खर्च आता है तो इस दरम्यान सरकार पूरा खर्च वहन करे। यूं भी आपने आयुष्मान भारत योजना चला ही रखी है।

3. तय कीजिए कि चाहे अंबानी हों या कोई गरीब मज़दूर- सरकार अगले तीन महीनों के लिए केवल उसकी उपरोक्त 5 जीवनरक्षक चीज़ों और चंद सुविधाओं की पूर्ति करने के लिए ही जिम्मेदार होगी। अगर उससे अधिक कोई खर्च करना चाहता है, तो अपनी औकात देखकर करे और सरकार उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं होगी। और अपने अपने सिस्टम का खर्च भी अपनी पिछली आमदनी से वहन करें। मेरा मानना है कि जिसका जैसा सिस्टम है, उसके हिसाब से उसे पहले इतनी आमदनी ज़रूर हुई है कि वह तीन महीने उसका खर्च वहन कर ले, जैसे मैं यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि उद्योग, स्कूल, मकान मालिक, बैंक आदि अपनी पिछली आमदनी से केवल तीन महीने आगे का भी खर्च नहीं उठा सकते।

4. केवल उपरोक्त 5 जीवनरक्षक चीज़ों और कुछ सुविधाओं से जुड़ी दुकानें या अन्य स्थल खुले रखिए और इन जीवनरक्षक चीज़ों और सुविधाओं की होम डिलीवरी भी चालू रखिए। जहाँ ज़रूरत हो वहाँ होम डिलीवरी में पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं को भी लगाइए। इन आवश्यक सामानों की आपूर्ति से जुड़े पासधारकों के अलावा केवल डॉक्टरों, अस्पतालों को खुला रखिए और गंभीर रूप से बीमार लोगों को आवाजाही करने दीजिए। इसके अलावा बाकी सब बंद कर दीजिए। शराब, सिगरेट, पान, गुटखा वाली नौटंकियां भी बंद कीजिए, क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में हम जैसे लोगों की नज़र में यह अक्षम्य है।

5. और हां, इस बार इस बंदी को लॉकडाउन जैसा रीढ़विहीन, लिजलिजा, पिलपिला, पौरुषहीन शब्द मत दीजिए। सीधा-सीधा इसे कर्फ्यू बोलिए और उल्लंघन करने वालों के लिए व्यापक जनसमूह की हत्या की साज़िश रचने जैसे आरोप लगाने और तदनुसार सख्त सज़ा का प्रावधान कीजिए। और कोई व्यक्ति यदि अपने लक्षण या बीमारी छिपाता है तो इसे भी जघन्य अपराध बनाइए और ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने के लिए स्थानीय प्रशासन को पूरी छूट दीजिए।

6. उपरोक्त पांच बिंदु सुनिश्चित करने हेतु तैयारी के लिए सरकार और प्रशासन 15 दिन और ले लें। फिर पूरी तैयारी और सख्ती के साथ 3 महीने के लिए सब कुछ बंद कर दीजिए। इस बार भूल जाइए कि कोई आपका वोट बैंक है, किसी की कोई जाति है या किसी का कोई धर्म है, या कोई बड़ा या छोटा है। अगर विपदा की ऐसी न भूतो न भविष्यति जैसी घड़ी में भी करोड़ों लोगों की जान की हिफाज़त के लिए इस लोकतंत्र में केवल तीन महीने हम विशुद्ध रूप से भारतीय बनकर बराबरी से नहीं रह सकते तो सभी लोग कोरोना से पहले चुल्लू भर पानी में शर्म से डूब मरिए।

7. लापरवाह, अनुशासनहीन और बेचैन आत्माओं को अस्पतालों में मरते लोगों की तस्वीरें भी दिखाइए और उनकी कहानियां भी बताइए, ताकि वे स्थिति की गंभीरता को समझ सकें। मैं जानता हूँ कि ऐसी तस्वीरें दिखाना और ऐसी कहानियां बताना अमानवीय लग सकता है, लेकिन जिन्हें मनुष्य जीवन की कीमत का अहसास ही नहीं, उन्हें इसका अहसास कैसे कराएंगे? जब यह तस्वीरें सामने आएंगी तो महामारी में सत्ता की राजनीति करने वाले गिद्धों की भी अहसास होगा कि सड़क पर चलते मज़दूरों का दर्द बड़ा है या अस्पतालों में तड़पकर दम तोड़ते उन मनुष्यों का दर्द बड़ा है, जिन्हें आपने अपनी प्रेस ब्रीफिंग का आंकड़ा भर बना दिया है।

8. सड़क पर चलते मज़दूरों के दुख से दुखी मैं भी हुआ, लेकिन मेरी प्राथमिकता इस वक़्त उन लोगों की जान बचाना है, जो इस फैलते संक्रमण का शिकार हो रहे हैं। मज़दूर पहले भी राजमहलों में नहीं रहते थे और हवाई जहाजों के बिज़नेस क्लास में सफर नहीं करते थे, इसलिए अगर आप उनके प्रति ईमानदार हैं तो कोरोना काल बीतने दीजिए और फिर सोचिए कि हमारे मॉडल में क्या गड़बड़ी है कि आज 70 साल बाद भी हमारे मिट्टी के लाल इतने बदहाल हैं और फिर उस गड़बड़ी को ठीक कीजिए।

9. अपनी स्वास्थ्य सुविधाएं और आवश्यक इंतजाम दुरुस्त करिए और इसे पर्याप्त बनाइये। इलाज और शोध पर लगातार काम होते रहना चाहिए, ताकि प्रथम अवसर प्राप्त होते ही कोरोना को मेडिकल साइंस के ज़रिए भारत में नष्ट कर दिया जाए।

10. लोगों तक जीवनरक्षक जानकारियां विश्वसनीयता के साथ पल पल पहुंचाना सुनिश्चित कीजिए।

नागरिकों के लिए 6 सुझाव:

1. मानकर चलें कि हर सामने वाला व्यक्ति कोरोना संक्रमित है और आपको अपनी जान बचानी है। इसके लिए ज़रूरी जीवनरक्षक नियमों (घर में रहना, मास्क, सोशल डिस्टेनसिंग, साबुन, सेनेटाइजर का उपयोग) का सख्ती से पालन करें।

2. समझें कि अगर देश के सभी लोग अपने घर में अपने परिजनों को छोड़कर किसी अन्य से संपर्क ही नहीं रखें, तो कोरोना अभी जहां है, वहीं ठहर जाएगा और एक महीने के भीतर अपने आप खत्म हो जाएगा।

3. सरकारों पर दबाव बनाएं कि जो 10 बिंदु हमने ऊपर सुझाए हैं, उन्हें सख्ती से लागू करें एवं माफिया और पूंजीपतियों की गोदी में न खेलें। साथ ही सुनिश्चित करें कि इस महामारी काल में कोई भ्रष्टाचार न कर सके।

4. मोदी-राहुल ब्लेमगेम टाइप चिरकुट राजनीति तीन महीने के लिए बंद कर दें, क्योंकि अगर संक्रमित होकर मर गए, तो कुछ लोग आंकड़ा बन जाएंगे और कुछ लोग वह भी नहीं बन सकेंगे। फिर न मोदी काम आएंगे, न राहुल, न अन्य लोग। जैसे अंबर टूटे हुए तारों के लिए शोक नहीं मनाता, वैसे ही धरती भी मारे गए लोगों के लिए शोक नहीं मनाती।

5. याद रखिए, सियासत और सरकारों की आँखों में भी मारे गए लोगों के लिए आंसू नहीं होते। वे मारे गए लोगों को भुलाकर जीवित बचे लोगों के सहारे चलती रहती हैं। इसलिए अपनी जान का मूल्य आप और केवल आप ही समझ सकते हैं। लोगों के मरने के बाद परिजन भी मुआवजा लेकर अपने आंसू पोंछ डालते हैं। इसलिए नग्न और क्रूर सच्चाई यह है कि अपनी जान की हिफाज़त इस वक़्त आपकी अपनी ही ज़िम्मेदारी है।

6. यहाँ तक कि किसी कथित अर्थव्यवस्था की चिंता में भी अपनी जान को दांव पर न लगाएं। जीवित रहेंगे तो फिर से सृजन कर लेंगे, फिर से धन-संपत्ति अर्जित कर लेंगे। फर्जी आंकड़ों वाली अर्थव्यवस्था मूल रूप से पूंजीपतियों के चोंचले हैं, जिसमें एक प्रतिशत व्यक्ति राज करता है, 20 प्रतिशत लोग उपभोक्तावादी जीवन जीते हैं और 79% लोग गरीबी, गंदगी, जहालत में जीते हैं।

मेरी बातें नागरिकों को, सरकारों को, सियासतदानों को, जिन भी लोगों को कड़वी लगी हों, वे मुझे माफ़ करें। आपके लिए दिल में दर्द है, अपनापन है, देश और नागरिक जल्दी उबर जाएं, इसीलिए कड़वा बोला।

पूरी दुनिया की निगाहें इस वक़्त भारत पर टिकी हैं। अगर भारत समय रहते इससे उबर गया, तो हम विश्व चैंपियन होंगे। और अगर इसमें उलझ गए तो अपने लाखों लोगों के साथ ही अपनी अर्थशक्ति का भी नाश कर बैठेंगे, जिससे उबरने में अगले कई साल बर्बाद हो जाएंगे। धन्यवाद।

अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से



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