महामारी के बीच केजरीवाल ने मीडिया को खरीद लिया और मीडिया बिक भी गया!
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Amidst the COVID-19 pandemic, Kejriwal bribed the media and the media received it happily!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


अगर मैं किसी समाचार चैनल का मालिक होता या उसका मैनेजमेंट संभाल रहा होता तो कोरोना महामारी के बीच दिल्ली में केजरीवाल सरकार की जनघाती गलतियां/मिसमैनेजमेंट सामने आने के अगले ही दिन उसका विज्ञापन स्वीकार कर लेने का लालच नहीं दिखाता।

अगर मैं ऐसे किसी समाचार चैनल का मालिक या प्रबंधक नहीं होकर संपादक होता, तो मालिक और मैनेजमेंट को विज्ञापन स्वीकार नहीं करने की सलाह देता और सलाह न माने जाने की स्थिति में आलोचना करने और सत्य सामने लाने की अपनी स्वतंत्रता सुनिश्चित करता और यदि यह स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं हो पाती, तो तुरंत अपना इस्तीफा दे देता।

वजह साफ है कि इस महामारी काल में केजरीवाल सरकार की जनघाती गलतियां/मिसमैनेजमेंट सामने आने के ठीक बाद उसका विज्ञापन स्वीकार कर लेने और पूरी घटना पर चुप्पी मारकर बैठ जाने का मतलब ही है उसके साथ नेक्सस बना लेना।

लोकतंत्र में विज्ञापन देकर या नहीं देकर केवल सरकारें ही मीडिया को झुका सकती हैं, मैं ऐसा नहीं मानता। मैं समझता हूं कि अगर मीडिया ईमानदार हो तो विज्ञापनों की डील के समय वह भी किसी जनविरोधी सरकार को दो तरीके से अपनी गलती का अहसास करा सकता है-

  1. विज्ञापन स्वीकार करते समय यह स्पष्ट करके कि आपके गलत कामों की पोल खोलने से हम अपनी संपादकीय टीम को नहीं रोकेंगे।
  2. अगर आप अपनी पोल खोलने से रोकने के लिए लालच के तौर पर विज्ञापन दे रहे हैं तो अपना विज्ञापन अपने पास रखिए।

लोकतंत्र में मीडिया को सिर्फ और सिर्फ जनपक्ष के साथ चलना चाहिए। भारत के कुछ स्वनामधन्य और पुरस्कृत पत्रकार किसी राजनीतिक पक्ष के साथ खड़े होने को पत्रकारिता मानते हैं। जैसे, जिन पत्रकारों के आका राजनीतिक दल अभी विपक्ष में हैं, वे विपक्ष के साथ खड़े होने को पत्रकारिता बताते हैं और जिनके आका अभी सत्ता में हैं, वे सत्ता पक्ष के साथ खड़े होने को पत्रकारिता बताते हैं।

ऐसे लोग पत्रकारिता के बारे में अपनी ऐसी नीति व मान्यता का प्रचार करते हुए भी दोहरा खेल खेलते हैं। जैसे, अगर वे केंद्र की मोदी सरकार के संदर्भ में सत्ता के विरोध को पत्रकारिता बताते हैं, तो दिल्ली या पश्चिम बंगाल की केजरी व ममता सरकार के लिए यही नीति नहीं अपनाते और यहां वे सत्ता का समर्थन करते हुए दिखाई देने लगते हैं। स्पष्ट है कि वे ठेकेदार हैं और विशेष कैम्प से ठेका लेकर काम कर रहे हैं।

मेरी नीति यह है कि लोकतंत्र में जिस वक़्त जो सही हो, उस वक़्त उसके साथ खड़ा होना ही पत्रकारिता है। अगर सरकार सही हो तो सरकार के साथ खड़ा होना पत्रकारिता है और यदि विपक्ष सही हो तो विपक्ष के साथ खड़ा होना पत्रकारिता है। चूंकि पत्रकारिता को देश और देश की जनता का पक्षधर होना चाहिए, इसलिए उसे सत्ता और विपक्ष के आधार पर नहीं, बल्कि देश और जनता के लिए सही या गलत के आधार पर अपना राजनीतिक पक्ष तय करना चाहिए।

सत्य और ईमानदारी की राह पर चलने वाले मीडिया और मीडियाकर्मियों को किसी भी लोभ या भय के कारण सच सामने लाने और दिखाने के अपने दायित्व से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। क्योंकि लोकतंत्र के सभी अंग अंततः देश और उसकी जनता के प्रति ही जवाबदेह हैं, न कि एक दूसरे के प्रति।

अब समझिए कि मैं केजरीवाल की आलोचना क्यों कर रहा हूँ? क्योंकि केजरीवाल ने इस महामारी काल में भी गंदी राजनीति की और केंद्र सरकार और लॉकडाउन को विफल करने के मकसद से बिहार और उत्तर प्रदेश के लाखों मज़दूरों को सड़कों पर उतारने और बेघर करने की या तो साज़िश रची या आपराधिक मिसमैनेजमेंट दिखाया।

ऐसा करके केजरीवाल ने न केवल बिहार, उत्तर प्रदेश और उसके लाखों लोगों के साथ धोखा किया है, बल्कि देश को भी एक भयानक संकट और असंख्य लोगों की जानों को जोखिम में डालने वाला काम किया है।

28 मार्च 2020 को कोरोना लॉकडाउन के दौरान आनंद विहार बस स्टैंड का नज़ारा

अगर आज केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार होती, तो धारा 356 का इस्तेमाल करके केजरीवाल सरकार को बर्खास्त किया जा चुका होता और अभी केजरीवाल समेत उनका पूरा मंत्रिमंडल सेल्फ आइसोलेशन का मज़ा चख रहे होते। लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है, तो केजरीवाल चैन की बांसुरी बजाते हुए टीवी चैनलों को विज्ञापन की घूस खिलाकर बगुला भगत बने रह सकते हैं।

केजरीवाल सरकार की आपराधिक गलतियों/मिसमैनेजमेंट के कारण आज बिहार और उत्तर प्रदेश के लाखों लोग न घर के रहे, न घाट के। वे वहां से भी निकल गए, जहाँ वे रह रहे थे। और वहाँ भी नहीं पहुंच पाए, जहां वे जाना चाहते थे। ऊपर से

  1. केंद्र सरकार समेत विभिन्न संबंधित राज्य सरकारों की टेंशन भी बढ़ गई
  2. पुलिस और प्रशासन के सिर पर भी अनपेक्षित काम का भारी बोझ आ गया
  3. मेडिकल चुनौतियां भी कई गुना बढ़ गई
  4. इस पूरे घटनाक्रम के कारण लाखों लोगों का इंतज़ाम करने के लिए संबंधित सरकारों पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव भी आ गया।
  5. और सबसे भयानक बात यह कि लाखों लोगों के बीच कोरोना संक्रमण फैलने का रिस्क भी बढ़ गया।

इसीलिए मैं साफ लफ़्ज़ों में दर्ज करा रहा हूँ कि कोरोना महामारी के व्यापक फैलाव के जोखिम भरे समय में केजरीवाल और उनकी सरकार की गलतियां/मिसमैनेजमेंट इतनी भयानक और आपराधिक हैं, जिसके लिए मुख्यमंत्री जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठे किसी आदमी को कभी माफ नहीं किया जाना चाहिए।

ज़रा यह भी सोचिए कि जनता के ख़ून-पसीने की कमाई से प्राप्त हुआ जो पैसा संकट की इस घड़ी में ज़रूरतमंदों के रहने, खाने और इलाज के ऊपर खर्च होना चाहिए था, वह पैसा अभी टीवी चैनलों को विज्ञापन की घूस खिलाकर एक मुख्यमंत्री का चेहरा चमकाने और आलोचनात्मक रिपोर्टों को रोकने में खर्च हो रहा है।

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