उम्मीदों को झटका, कोरोना वायरस के खिलाफ काम नहीं कर रही HIV की दवा
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Clinical trial shows HIV drugs ineffective against COVID-19

चीन में डॉक्टरों और शोधकर्ताओं के एक समूह ने पाया है कि HIV के मरीजों के इलाज में प्रभावी साबित होने वाली दवाएं कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से फैली बीमारी COVID-19 के इलाज में कारगर साबित नहीं हो रही है। द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (The New England Journal of Medicine) में प्रकाशित अपने पेपर में इस समूह ने चीन के वुहान में मरीजों के साथ किए गए क्लीनिकल ट्रायल के बारे में विस्तार से बताया है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि इससे उन्होंने क्या सीखा है। लिंडसे बैडेन (Lindsey Baden) और एरिक रुबिन (Eric Rubin) ने बृघम (Brigham) और महिला अस्पताल (Women’s Hospital) के साथ मिलकर इसी जर्नल के संपादकीय में चीन में टीम द्वारा किये गये काम की चर्चा की है।

इसके लिए शुरू किया था क्लीनिकल ट्रायल

हाल ही में चिकित्सा समुदाय ने यह पता लगाया था कि कोविड-19 और एचआईवी दोनों के लिए जो वायरस जिम्मेवार होते हैं, उन्हें संक्रमण फैलाने के लिए प्रोटीज नामक एंजाइम की आवश्यकता होती है। पहले के शोध में पाया गया है कि प्रोटीज इनहिबिटर्स लोपिनवीर (lopinavir) और रटनवीर (ritonavir) एचआईवी के मरीजों के इलाज में कारगर हैं, जिसकी वजह से लोगों ने यह सोचना शुरू कर दिया कि हो सकता है कि यह SARS-CoV-2 वायरस के खिलाफ भी प्रभावी साबित हो, जो कि COVID-19 के संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। यह पता लगाने के लिए कि क्या ऐसा हो सकता है वुहान में टीम ने क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया था।

इस तरह से किया शोध

दो समूहों में से एक को परीक्षण के तहत 199 मरीजों के वे मामले सौंपे गये, जिनमें COVID-19 एडवांस स्टेज में पहुंच चुका था। एक समूह को जहां उच्च स्तर की देखभाल मिली, जिसमें कि पूरक ऑक्सीजन भी शामिल था, जबकि दूसरे को लोपिनवीर और रटनवीर दिये गये। अंत में 94 मरीजों को प्रोटीज इनहिबिटर्स दिये गये। दुर्भाग्य से शोधकर्ताओं ने पाया कि दवाओं के उपयोग का कोई लाभ नहीं मिला। जिन लोगों को दवा दी गई, उन्होंने उनसे बेहतर बिल्कुल भी प्रदर्शन नहीं किया, जिन्हें दवा नहीं दी गई।

चुनौतियां भी कई थीं

वैसे, इसके साथ कुछ चुनौतियां भी थीं। एक तो सभी मरीज बीमारी के एडवांस स्टेज में थे, जिससे इस बात की संभावना कम ही थी कि कोई भी उपचार या थेरेपी उनकी मदद कर पाए। दूसरा कि परीक्षण का आकार बहुत छोटा था। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने पाया कि दवाओं ने उन मरीजों के लिए समय को कम कर दिया जो किसी भी क्लीनिकल ​​सुधार को देखने के लिए एक दिन बच गए। दुर्भाग्य से, एक दिन वाला सुधार भी केवल उन्हीं मरीजों में देखा गया था, जिन्हें लक्षणों की शुरुआत के 12 दिनों के अंदर दवाएं दे दी गई थीं। बैडेन और रुबिन ने पाया है कि वही दवाएं अभी भी उन लोगों के लिए मददगार होने की संभावना रखती हैं, जिन्हें संक्रमण के तुरंत बाद मरीजों को उपलब्ध करा दिया जाता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि चीन में टीम ने जो बहादुरी दिखाई है, उससे दुनिया भर में अन्य टीमों को भी भविष्य के परीक्षणों के लिए उनके डेटा को प्रयोग में लाने की हिम्मत मिली है।

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