आतंकी हमले में पिता को खोने के बाद रिफ्यूजी कैम्प में शरण लेनी पड़ी थी इस कश्मीरी एक्टर को
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This Kashmiri actor had to take refuge in a refugee camp after losing his father in a terrorist attack

दोस्तो, यह तो आप जानते ही होंगे कि भारत का जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर पर 1990 में आतंकवादियों की बुरी नज़र पड़ गई थी। इस कारण वहां सदियों से बसे कश्मीरी पंडितों पर अनेक तरह के जुल्म हुए, कईयों की हत्या की गई, कई के साथ बलात्कार हुए और अंततः करीब साढ़े तीन लाख लोगों को वहां से विस्थापित होना पड़ा।

लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि बॉलीवुड के एक अभिनेता को भी कश्मीरी पंडितों पर टूटे इस कहर का सामना करना पड़ा, उनके पिता की हत्या कर दी गई और उनके बचे हुए परिवार को जम्मू के शरणार्थी शिविर में शरण लेनी पड़ी थी?

अभिनेता संजय सूरी पर बरपा था कहर

हम बात कर रहे हैं फिल्म अभिनेता और निर्माता संजय सूरी की, जिनका जन्म 1971 में हुआ था और इसके बाद के 19 साल उन्होंने कश्मीर की खूबसूरत वादियों में गुजारे। लेकिन 1990 में आतंकवादियों ने न सिर्फ उनके पिता की हत्या कर दी, बल्कि उनके पूरे परिवार को जम्मू के शरणार्थी शिविर में पनाह लेकर अपनी जान बचानी पड़ी। इसके बाद संजय सूरी और उनका परिवार दिल्ली में आ बसा।

संजय सूरी का फिल्मी करियर

संजय सूरी ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1999 में “प्यार में कभी-कभी” नामक फिल्म से की थी। इसके बाद भी वे कई फिल्मों में सपोर्टिंग भूमिकाओं में नजर आये, लेकिन उन्हें खास चर्चा मिली साल 2003 में रिलीज हुई मूवी “झंकार बीट्स” से, जिसमें जूही चावला के साथ वे लीड रोल में थे।

उन्होंने 2005 में ‘माई ब्रदर निखिल’ में होमोसेक्सुअल का किरदार भी निभाया, जो एचआईवी से पीड़ित था। उनके इस रोल की खूब सराहना हुई थी। इस फिल्म में भी जूही चावला उनके साथ थीं।

इसके बाद अनेक फिल्मों में काम करते हुए संजय सूरी ने फिल्म प्रोड्यूसर के तौर पर अपनी पहचान बनाने की ठानी और फिल्म ‘आई एम’ को को-प्रोड्यूस किया। वे फिल्म प्रोडक्शन कंपनी एंटीक्लाॅक फिल्म्स के मालिक भी हैं।

संजय सूरी के मानवाधिकारों की फिक्र किसे है?

आज इस देश में अनेक लोग आतंकवादियों से भी सहानुभूति रखते हैं और उनके मानवाधिकारों का ढिंढोरा पीटते रहते हैं, लेकिन संजय सूरी जैसे कश्मीर के विस्थापितों के दर्द का उन्हें अहसास तक नहीं। क्या संजय सूरी जैसे उन लाखों लोगों के मानवाधिकार नहीं हैं, जिन्हें आतंकवादियों के कारण अपने परिजनों को खोना पड़ा और शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी और जो आज तक अपनी मिट्टी पर वापस नहीं लौट पाए हैं?

तनमन.ओआरजी संजय सूरी के संघर्ष को सलाम करता है और भविष्य के लिए उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं देता है। अगर आप भी संजय सूरी के संघर्ष से सहानुभूति रखते हैं, तो इस पोस्ट को खूब शेयर करें और दुनिया को बताएं कि आतंकवाद किसी भी तरह से समर्थन या सहानुभूति का विषय नहीं हो सकता।

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