जानें, जन्माष्टमी पर क्यों मनाया जाता है दही-हांडी का उत्सव?
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Reason behind celebrating Dahi Handi Festival after Janmashtami

जन्माष्टमी के उत्सव के ठीक एक दिन बाद देश भर में दही हांडी का उत्सव भी मनाया जाता है। यह एक ऐसा उत्सव होता है, जिसमें गली-मोहल्ले के लोग एक जगह इकट्ठा होकर पूरे हर्षोल्लास के साथ इसे मनाते हैं। विशेषकर महाराष्ट्र और गुजरात में इसे धूमधाम से मनाया जाता रहा है। हालांकि, अब पूरे देश में इस त्योहार की धूम देखने को मिलती है। पर क्या आपको मालूम है कि आखिर दही हांडी उत्सव मनाने की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई?

क्या है दही हांडी का उत्सव? (What is Dahi Handi Festival)

भगवान श्री कृष्ण भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को आधी रात में जन्मे थे। उनके जन्म की खुशियां मनाने के लिए ही दरअसल दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान चौराहों पर दही और मक्खन भरकर मटकियां लटका दी जाती हैं। इस दौरान लोग जमा हो जाते हैं जो कि भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप गोविंदा का ही प्रतिरूप होते हैं। ये सभी एक-दूसरे पर चढ़ते हुए मटकी फोड़ते हैं। इसे ही दही हंडी का उत्सव कहते हैं।

क्या हुआ था जन्म के वक्त? (What happend during Shri Krishna’s birth)

आकाशवाणी जिसने बताया था कि वासुदेव की आठवीं संतान कंस की मौत का कारण बनेगी, उसे सुनने के बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल कर रखा हुआ था। रोहिणी नक्षत्र में जब आधी रात को देवकी की कोख से भगवान श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया, तो वासुदेव ने घनी बारिश में भी उन्हें किसी तरीके से बचाकर गोकुल में यशोदा और नंद के घर पहुंचा दिया। भले ही कंस देवकी की होने वाली सभी संतानों को एक के बाद एक लगातार मौत के घाट उतारता जा रहा था, लेकिन भगवान श्री कृष्ण सुरक्षित बच गए। गोकुल में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बाल लीला शुरू कर दी।

मटकी फोड़ने का इतिहास (History of Dahi Handi Festival)

श्री कृष्ण की बाल लीला देखते ही बनती थी। गोकुल में भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल रूप में गोपियों को खूब परेशान किया। परेशान गोपियां मैया यशोदा के पास जाकर भगवान श्री कृष्ण की शिकायत भी करती थी कि गोपियों की मटकी से वे माखन चुरा कर खा लेते हैं। यशोदा मैया उन्हें समझाती तो रहती थीं, लेकिन कान्हा पर इसका कोई भी असर नहीं होता था। इसी वजह से जन्माष्टमी के बाद दही हांडी उत्सव मनाने की परंपरा की भी शुरुआत हो गई।

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