अगले 3 महीने में 25 करोड़ भारतीयों के संक्रमित होने की भविष्यवाणी करने वाली खबर झूठी
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कोरोना क्विक अपडेट

  • स्वास्थ्य मंत्रालय के 15 मई 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अभी कोरोना के 3673802 एक्टिव केस हैं, 20432898 लोग ठीक हो चुके हैं और 266207 की मृत्यु हो चुकी है।
  • वेबसाइट वर्ल्डमीटर्स.इनफो के मुताबिक, भारत कोरोना से मृत्यु के मामले में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना से पूरी दुनिया में अब तक 16,15,13,458 लोग संक्रमित हुए हैं और 33,52,109 लोग दम तोड़ चुके हैं।
  • कोरोना के बारे में अफवाहों से बचने और पल-पल की सही जानकारी व ख़बरें प्राप्त करने के लिए जुड़े रहें https://tanman.org/ के साथ।

False report says, the toll of corona virus cases in India may rise up to 25 crore in next 3 months

कई मीडिया रिपोर्ट्स में जाॅन्स होप्किंस यूनिवर्सिटी (Johns Hopkins University) और Centre for Disease Dynamics, Economics & Policy (CDDEP) के हवाले से दावा किया जा रहा था कि भारत में कोरोना वायरस (Corona Virus) के संक्रमण की स्थिति आने वाले दिनों में बेहद गंभीर हो सकती है। इस दावे में कहा जा रहा था कि 21 दिनों का लाॅकडाउन (lockdown) भारत में बेअसर साबित होने वाला है। अप्रैल-मई-जून के दौरान भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से होने वाली बीमारी COVID-19 अपने चरम पर पहुंच जाएंगी और तब तक न्यूनतम 12 करोड़ से लेकर 25 करोड़ लोग इसके संक्रमण के शिकार हो सकते हैं।

लेकिन अब जाॅन्स होप्किंस यूनिवर्सिटी की ओर से बताया गया है कि उसने CDDEP को इस बात के लिए मंजूरी नहीं दी थी कि वह भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर कोई अध्ययन करके इसके बारे में कोई रिपोर्ट जारी करे।

सबसे बड़ी बात तो ये है कि सच दिखाने का ढिंढोरा पीटने वाले कई बड़े और प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने भी सत्यता की पुष्टि किये बिना ही इस झूठी रिपोर्ट को न केवल प्रकाशित और प्रसारित किया, बल्कि इसके जरिये कोरोना वायरस को लेकर पहले से ही भारत में डरे हुए लोगों की घबराहट और बेचैनी को और बढ़ाने का काम किया।

लेकिन tanman.org इस तरह की गलत या झूठी खबरों के खिलाफ लड़ाई लड़ने और जनता को सच्चाई से अवगत कराते रहने के लिए प्रतिबद्ध है। इसीलिए हम आपके लिए इस झूठी खबर की जानकारी लेकर आए हैं, ताकि देश में अफवाहें फैलाने में जुटे लोगों के मंसूबे नाकाम हो सकें और हम कोरोना के खिलाफ जंग को सफलतापूर्वक जीत सकें।

एक व्यक्ति द्वारा जब जाॅन्स हाॅप्किंस यूनिवर्सिटी को टैग करके रिपोर्ट की सच्चाई पूछी गई और इसके रिप्लाई में जब यूनिवर्सिटी की ओर से ऐसी किसी भी रिपोर्ट में शामिल होने से इनकार किया गया, तभी झूठी खबर चलाने वाले मीडिया संस्थानों ने इस रिपोर्ट को डिलीट किया।

रिपोर्ट में बताया गया था कि यदि लोगों ने लाॅकडाउन का ठीक से पालन नहीं किया और एक-दूसरे से संपर्क में आते रहे, तो ऐसे में सभी मामलों को मिलाकर जून के अंत तक भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 25 करोड़ तक भी पहुंच सकती है।

इस तरह से अध्ययन का किया था दावा

  • इस फेक रिपोर्ट में कहा गया था कि जाॅन्स होप्किंस और CDDEPD ने इस संख्या तक पहुंचने के लिए इंडिया सिम का इस्तेमाल किया।
  • इसमें दावा किया गया कि भारत में जनसंख्या के विश्लेषण को इस माॅडल का इस्तेमाल कई वर्षों से व्यापक तौर पर किया जाता रहा है।
  • साथ ही दावा किया गया था कि सरकार के निर्णयों में भी इससे प्राप्त होने वाले आंकड़ों को प्रयोग में लाया जाता रहा है।
  • रिपोर्ट के अनुसार एकदम चरम पर पहुंचने वाली परिस्थिति में हाॅस्पिटल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 25 करोड़ तक, इससे थोड़ी राहत वाली परिस्थिति में 18 करोड़ तक और सबसे कम खतरे वाली परिस्थिति में 12 करोड़ तक पहुंच जायेगी।

वेंटिलेटर को लेकर दिखाये थे ये आंकड़े

  • रिपोर्ट में बताया गया था कि वेंटिलेटर (Ventilator) की मांग 10 लाख की होगी। वर्तमान में उपलब्धता की बात की जाए तो भारत के पास 30 से 50 हजार वेंटिलेटर की क्षमता हो सकती है।
  • रिपोर्ट में चेताया गया था कि हेल्थकेयर (healthcare) में लगे कर्मियों को यदि संक्रमण होता है और उनकी मौत होती है तो आम लोगों की मौत में तेजी आने लगेगी।
  • इसलिए हेल्थकेयर में लगे लोगों को व्यक्तिगत तौर पर सुरक्षा की जरूरत है। जैसे कि उनके पास मास्क और गाउन (masks and gowns) होने चाहिए। इसके नहीं होने की स्थिति में वे बीमार पड़ते जाएंगे। वे यदि बीमार पड़े तो हेल्थकेयर सिस्टम ही ठप पड़ जायेगा, जिससे स्थिति और भयावह हो जायेगी।

टेस्टिंग को लेकर क्या कहा गया था इस फेक रिपोर्ट में?

इस फेक रिपोर्ट में कहा गया था कि शोधकर्ताओं ने पाया है कि केवल टेस्टिंग (testing) करके ही इस महामारी (epidemic) पर नियंत्रण पाया जा सकता है। आधिकारिक तौर पर यदि संक्रमित मरीजों की सही संख्या सामने आने लगेगी, तो इसे देखकर बाकी लोग सामाजिक दूरी बरतने और एकांत में रहने के लिए ज्यादा प्रेरित होंगे, जिससे कि संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी। इस परिस्थिति में सीमाओं को भी सील करने से कोई खास फायदा नहीं मिलने वाला। उल्टा इससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और बेचैनी अधिक बढ़ेगी। पहले चरण में जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैल रहा संक्रमण महत्वपूर्ण था, वहीं अब घरेलू स्तर पर हो रहा संक्रमण अधिक महत्वपूर्ण है, जिस पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय स्तर के लाॅकडाउन के बेअसर होने का किया गया था दावा

इस फेक रिपोर्ट में बताया गया था कि राष्ट्रीय स्तर पर किये गये लाॅकडाउन का कोई खास फायदा नहीं होने वाला है। इसके विपरीत इससे अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से नुकसान होगा। इससे भूखमरी बढ़ेगी। इससे लोगों का धैर्य भी टूटेगा, जिससे कि संक्रमण के बढ़ने का खतरा और बढ़ जायेगा। फेक रिपोर्ट यह भी कह रहा थी कि कई राज्यों में संक्रमण में बढ़ोतरी दो हफ्तों के बाद देखने को मिलने वाली है। लाॅकडाउन का महत्व तभी है, जब यह संक्रमण को फैलने से रोक सके और अर्थव्यवस्था को इससे कम नुकसान पहुंचे।

फरवरी की शुरुआत में ही पहले मामले सामने आने का किया गया था दावा

इस फेक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के शुरुआती मामले फरवरी की शुरुआत में ही आ गये होंगे। जिन लोगों में संक्रमण अगले हफ्ते नजर आने वाला है, वे पहले ही संक्रमित हो चुके हैं। उनसे वायरस फैल भी रहा होगा। जब तक उनमें इसके लक्षण देखने को मिलेंगे, तब तक वे न जाने कितनों को संक्रमित कर चुके होंगे।

बताया था किन्हें कितना खतरा?

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि वैसे तो अधिकतर मामलों में संक्रमण से मौत का खतरा कम है, मगर बुजुर्गों के मामले में मृत्यु की दर सबसे अधिक है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि बच्चे के इससे संक्रमित होने की आशंका सबसे कम है। व्यस्कों की तुलना में उनके हाॅस्पिटल में भी भर्ती होने की आशंका कम ही है। बीमारी का प्रभाव व्यस्कों की तुलना में बच्चों में कम हो सकता है, ऐसा इस रिपोर्ट में बताया गया था।

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