
Abhiranjan Kumar on Vaseem Rizvi introduction to Sanatan Dharma as Jitendra Narayan Singh Tyagi
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अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी वापस सनातनी (जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी) बन गए हैं। वसीम रिज़वी एक प्रगतिशील मुस्लिम रहे, जो इस्लाम में सुधारों की ज़रूरत पर बल दे रहे थे, लेकिन उनकी आवाज़ सुनी नहीं गयी और उल्टे उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं। जड़ समाज में सुधारों की बात करने वाले अनेक महापुरुषों के साथ पहले भी ऐसा होता रहा है और बहुत बाद में लोगों ने महसूस किया कि वे सही कह रहे थे।
इस परिप्रेक्ष्य में वसीम रिज़वी (अब जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी) को मैं एक क्रांतिकारी समाज सुधारक के तौर पर देख रहा हूँ और उन्हें हम जैसे तमाम सुधारवादी लोगों का संबल प्राप्त होना चाहिए। भारत में इस्लाम में सुधार के लिए वे कुरान से 26 आयतों को हटाने की मांग कर रहे थे और जब समाज में उनकी बात नहीं सुनी गई, तो सुप्रीम कोर्ट भी गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका पर सुनवाई करने के बाद उसे ख़ारिज कर दिया था।
यूँ देखा जाए तो वसीम रिज़वी की मांग गलत नहीं थी और माननीय सुप्रीम कोर्ट को चाहिए था कि वे भारत के प्रमुख इस्लामिक विद्वानों की कमेटी बनाकर शिकायत वाली आयतों पर उनसे व्याख्या पेश करने को कहते। और यदि किसी आयत की व्याख्या भारतीय संविधान द्वारा अपनाए गए मूल्यों से मेल नहीं खा रही होती, तो वे भारत सरकार से नोटिस जारी करके उनका पक्ष पूछते अथवा भारत सरकार को भारत की सीमा के भीतर बिकने वाली किताबों में उन आयतों में सुधार करवाने या हटाये जाने का मार्ग प्रशस्त करने का निर्देश देते।
फिर भी मान लीजिए कि यदि माननीय सुप्रीम कोर्ट को लगा हो कि यह मामला उनकी परिधि से बाहर है या इससे नाहक ही विवाद खड़ा हो जाएगा, तो अपने पड़ोसी देश चीन से प्रेरणा लेकर खुद भारत सरकार को इसकी पहल करनी चाहिए, क्योंकि आतंकवाद, धार्मिक हिंसा और दूसरे धर्मों के लोगों एवं विचारों के प्रति असहिष्णुता को रोकने के उपाय करना तो उसका संवैधानिक दायित्व है। आखिर उन 26 आयतों पर इस्लाम के विद्वानों से उसकी सही व्याख्या पूछ ली जाए, उस व्याख्या पर संविधान विशेषज्ञों की राय ले ली जाए, देश में भी खुलकर चर्चा हो जाए, और फिर यदि लगे कि सुधार करना चाहिए, तो दिक्कत क्या है? मैं यह थोड़े ही कह रहा हूँ कि इस्लाम के विद्वानों को सही व्याख्या का अवसर दिए बिना अपनी मर्ज़ी से कोई चीज़ उनपर थोप दी जाए। यह तो मैं कभी कह ही नहीं सकता।
लेकिन सवाल है कि आज यदि लगभग सारे इस्लामिक आतंकवादी कुरान का ही सहारा लेकर अपनी अमानवीय गतिविधियों, कुकृत्यों और हिंसा को वाजिब ठहरा रहे हैं, तो क्यों न यह देखा जाए कि यह विकृति आयतों की दिक्कत के कारण पैदा हुई है या लोगों के समझने की दिक्कत के कारण पैदा हुई है? यदि समझने की दिक्कत है, तो लोगों को सही बात समझाई जाए और यदि सचमुच कुछ आयतों में ही दिक्कत है तो उन्हें चिह्नित करके सुधारा जाए या हटाया जाए। बस इतनी सी तो बात है!
हालांकि यह भी कहूंगा कि सुप्रीम कोर्ट या भारत सरकार ऐसी कोई पहल करे, उससे ज़्यादा बेहतर यह होगा कि भारत में इस्लाम के झंडावरदार और शुभचिंतक स्वयं ही यह पहल करें। आखिर हमारे मुसलमान भाइयों और बहनों को भी देश की मुख्य धारा में शामिल होकर हिंदुओं के कंधे से कंधा मिलाकर चलने का हक है। आखिर कब तक वे कुरान या इस्लाम के नाम पर अपनी जड़ और ज़मीन से कटे रहकर आतंकवादी होने की तोहमत झेलते रहेंगे और पाकिस्तानी कहे जाते रहेंगे?
यहां भारत में बहुसंख्यक होने के नाते और मानवता की रक्षा करने हेतु सनातनियों का भी यह दायित्व है कि वह अपने मुस्लिम भाइयों-बहनों से नफ़रत न करे और उन्हें मुख्य धारा में शामिल होने का अवसर दे। उन्हें उनकी जड़ों, उनके इतिहास, उनके पूर्वजों पर हुए अत्याचारों के बारे में बताया जाए और कुरान व इस्लाम के नाम पर आज भी दुनिया भर में हो रही हिंसा और आतंकवाद की जानकारी दी जाए।
हमारे मुस्लिम भाइयों बहनों में अशिक्षा और गरीबी के कारण जागरूकता की बहुत कमी है। मुगल आक्रमणकारियों ने उनके पूर्वजों पर तरह तरह के अत्याचार किये, महिलाओं के साथ बलात्कार किये, उनके पूजा स्थलों को तोड़ा और या तो उन्हें मार डाला या फिर मुसलमान बनने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन पूर्वजों द्वारा जान बचाने की मजबूरी में अपनाए गए विचार को ही वे अपना मूल और सर्वस्व मान बैठे हैं और आज भी लगातार परेशानी और गरीबी में हैं। आखिर वे कौन हैं, उनकी जड़ें क्या हैं, उनका इतिहास क्या है, उनका वर्तमान किन कारणों से संकटग्रस्त है और उनका भविष्य कैसे बेहतर हो सकता है, यह भी उन्हें बताने में क्या दिक्कत है?
मैं तो काफी समय से कह रहा हूँ कि भारत में आतंकवाद और कट्टरता की विचारधारा से प्रभावित लोगों के डिरेडिकलाइजेशन की नीति बननी चाहिए और सरकार को प्रभावी तरीके से उसपर अमल करना चाहिए। (कट्टरपंथियों के डिरेडिकलाइजेशन के बारे में अभिरंजन कुमार का लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।) देश के समुचित विकास, सर्व धर्म समभाव, शांति और सहिष्णुता की स्थापना एवं अपनी भावी पीढ़ियों को सुरक्षित करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है।
यहां मैं यति नरसिंहानंद जी की भी तारीफ करना चाहूंगा, जिन्होंने वसीम रिज़वी (अब जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी) को जान से मारे जाने की धमकियों के बीच उन्हें सनातन धर्म में वापस शामिल कराके एक तरह से उनकी प्राणरक्षा का मानवता भरा पुनीत और साहसिक कार्य किया है। भारत में यति नरसिंहानंद जैसे और भी साहसी संतों की ज़रूरत है, जो धर्म को संकीर्णता के दायरे से बाहर निकालकर मानवता की पताका बना सकें।
लेकिन मुझे यह बात पसंद नहीं आयी कि वसीम रिज़वी सनातन में शामिल होकर त्यागी बिरादरी का हिस्सा बनेंगे। भाई, ये बिरादरी बिरादरी खेलना छोड़ो। यह बकवास है। अब नहीं चलेगा। भारत से जाति-प्रथा के कलंक को मिटाने का सबसे प्रभावशाली और व्यावहारिक फार्मूला भी मैं कई साल पहले दे चुका हूँ और आज भी इस बात पर कायम हूँ कि केवल इस्लाम में ही क्यों, हिंदुओं में भी रिफॉर्म होने चाहिए। (जाति प्रथा का कलंक कैसे मिटाएं, इस पर अभिरंजन कुमार का फॉर्मूला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।)
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वाली आदिकालीन वर्ण व्यवस्था अब भारत में है नहीं। उन चार कर्म-आधारित वर्णों की जगह अब लगभग चार हज़ार जन्म-आधारित जातियों ने ले ली है और हमारे अदूरदर्शी नेताओं की नासमझी के कारण संविधान का संरक्षण भी प्राप्त कर लिया है, जो कि एक भारी ऐतिहासिक भूल हुई है। इस भारी भूल के कारण इस मामले में हमारे संविधान के अंदर भी विरोधाभास पैदा हो गया है। एक तरफ वह सभी नागरिकों की समानता की बात करता है, दूसरी तरफ उसने भेदभाव बढ़ाने वाली व्यवस्था को चट्टान जैसी मजबूती प्रदान कर दी है। यह गलत है और हिंदुओं को इन हज़ारों जन्मना जातियों की कुव्यवस्था से बाहर निकालना ही होगा।
इसलिए जब मैं इस्लाम और हिंदुओं में रिफॉर्म की वकालत कर रहा हूं, तो भारत के संविधान में भी रिफॉर्म पर बल दे रहा हूँ। अरे भाई, रिफॉर्म करने ही हैं तो ज़रा ढंग से करो, जो टिकाऊ हो, सदियों चले, हमारी भावी पीढियां सुरक्षित रहें, जिसमें बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य का हित संरक्षित हो सके और जो पूरी दुनिया में मानवतावादी विचारों की स्थापना के लिए एक आदर्श मॉडल बन सके।
और अंत में एक बात याद रखिए कि हम भारतवासियों का असली धर्म वही है, जो स्पष्ट शब्दों में कहता है– “वसुधैव कुटुम्बकम।’ यानी पूरी धरती, पूरी दुनिया, पूरा विश्व ही हमारा परिवार है। और”सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग भवेत्।”अर्थात सभी सुखी हों, सभी निरोग रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के द्रष्टा बनें और किसी के भी हिस्से में दुःख का लेशमात्र न रहे।
इसलिए यह तय मानिए कि हज़ारों जातियों में विभाजित रहकर हम अपने पूर्वजों द्वारा दिखाए गए आदर्श और सिखाए गए मानवता के पाठ को सही अर्थों में कभी लागू नहीं कर पाएंगे। इसलिए सोचिए। सभी मिलकर सोचिए और गंभीरता से सोचिए।
ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः।
(अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से)
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