
The gap between different classes is widening due to private schools : Abhiranjan Kumar
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अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।
अनेक लोगों से बातें हो रही हैं। कोरोना काल में यह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है कि प्राइवेट स्कूल स्कूल नहीं दुकानें हैं। यहाँ अभिभावकों का आर्थिक मानसिक शोषण होता है और बच्चों को उपभोक्तावादी संस्कार दिए जाते हैं, जिससे भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में विभिन्न वर्गों के बीच की खाई दिनोंदिन खतरनाक रूप से चौड़ी होती जा रही है।
भारत का मॉडल कृष्ण और सुदामा के एक साथ एक स्कूल में पढ़ने का है, लेकिन माफिया द्वारा संचालित प्राईवेट स्कूलों की वजह से इस देश में वर्गभेद भयावह रूप ले चुका है। ताज़ा मज़दूर संकट इस बात का प्रमाण है कि देश के नीति निर्माता और खासकर ब्यूरोक्रेट्स उनकी समस्याओं का सही आकलन नहीं कर पाए। समझदारी की ऐसी कमी विभिन्न वर्गों के बीच इसी खाई के कारण पैदा हुई है।
इसलिए अगर कोरोना की वजह से देश के सारे प्राईवेट स्कूल बंद हो जाएं, तो मैं कोरोना को भगवान की तरह पूजूँगा। अब मुझे इन स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचरों और अन्य स्टाफों की नौकरी की दुहाई मत दीजिएगा। इनमें से जो भी योग्य हैं, उन्हें सरकारी स्कूलों में नौकरी दी जानी चाहिए, जहाँ पहले से अयोग्य लोगों की भरमार है। और उन अयोग्य लोगों को वहाँ से हटाकर उन कामों में लगाया जाना चाहिए, जिसके लिए वे योग्य हों।
यानी भारत की स्कूल प्रणाली और समग्र शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तनों की आवश्यकता है। याद रखिए, जिस देश की सरकारें देश के बच्चों की शोषणमुक्त पढ़ाई तक का इंतजाम नहीं कर सकतीं, वे सरकारें नहीं, माफिया गिरोह हैं और भारत में स्कूल माफिया स्वास्थ्य माफिया से भी अधिक भयावह रूप धारण कर चुका है।
इसलिए देश के मध्य वर्ग को झूठी शानो-शौकत छोड़कर प्राइवेट स्कूलों को धूल में मिला देना चाहिए और सरकारों को इस बात के लिए बाध्य करना चाहिए कि अगर तुम हमारे टैक्स के पैसे से हमारे बच्चों के लिए अच्छे स्कूल तक नहीं चला सकते, तो या तो इस्तीफा देकर राह पकड़ो, वरना अपने बच्चों के भविष्य के लिए हम तुम्हें भी धूल में मिला देंगे। धन्यवाद।
(अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से)