प्री-मैरिटल, पोस्ट-मैरिटल अफेयर्स और लिव-इन रिलेशन की भारत में नहीं हो कोई जगह!
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Pre-marital & post-marital affairs and live-in-relationship must not be allowed in India

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


सुशांत हत्या/आत्महत्या कांड में सत्य और इंसाफ क्या है, पता नहीं, लेकिन लिव इन रिलेशनशिप की कमियां एक बार फिर से अवश्य उजागर हो गई हैं। यदि यह सच है कि सुशांत की लिव इन पार्टनर (या गर्लफ्रैंड?) रिया ने पिछले एक साल में उसके 15 करोड़ रुपयों का वारा-न्यारा कर दिया, तो कहना चाहूंगा कि भारत की बुरी से बुरी पत्नी भी, जो परंपरागत विवाह पद्धति से शादी करके पत्नी बनी हो, अपने पति को आर्थिक रूप से चूना नहीं लगा सकती, न ही उसके शरीर और स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर सकती है, बशर्ते कि वह पथभ्रष्ट होकर पोस्ट-मैरिटल अफेयर में नहीं उलझ गई हो, जिसकी विवाह-सम्बंध में इजाज़त नहीं है।

लेकिन न जाने क्यों, हिन्दू विवाह पद्धति और परिवार व्यवस्था को सुनियोजित तरीके से नष्ट किया जा रहा है। इसे बर्बाद करने के लिए प्री-मैरिटल और पोस्ट-मैरिटल अफेयर्स को अनुचित और अनैतिक रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है। हमारा सुप्रीम कोर्ट तक इस खेल में शामिल है। आपको याद होगा कि दो साल पहले उसने धारा 497 को संशोधित कराने की बजाय खत्म कर देने का फैसला सुनाया था। यह धारा पोस्ट मैरिटल अफेयर्स को गैरकानूनी ठहराती थी। (कृपया इस बारे में मेरा पुराना लेख बहसलाइव.कॉम पर इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं।)

लेकिन मुख्य पाप कम्युनिस्टों का है, जिन्होंने स्त्री-आज़ादी के नाम पर स्त्रियों को सिर्फ शरीर बन जाने के लिए उकसाया है। स्त्री-आज़ादी के कम्युनिस्ट कॉन्सेप्ट के मुताबिक, केवल वही स्त्री आज़ाद मानी जा सकती है, जो मर्ज़ी होने पर किसी के भी साथ सो जाए और मर्ज़ी नहीं होने पर पति के भी साथ सोने से इनकार कर दे। ज़ाहिर है, पुरुषों की बुराइयों पर अंकुश लगाने के बजाय सुनियोजित तरीके से महिलाओं को आवारा, उच्छ्रंखल बनने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

आज इस बात को स्टेटस सिंबल बना दिया गया है कि किसी लड़के या लड़की ने कितने पार्टनर बदले हैं। सुशांत के केस में ही देख लीजिए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अंकिता लोखंडे से लेकर रिया चक्रवर्ती तक या तो स्वयं उसने कई पार्टनर बदले या उसके विभिन्न पार्टनरों ने उसे बदला। और इतने पार्टनरों के बाद, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसके परिवार के लोग जल्दी ही उसकी शादी करने के बारे में सोच रहे थे। आखिर ऐसी शादियों का क्या मतलब है? शादी क्या ढोल-बाजा बजाकर दो लोगों को एक कॉन्ट्रैक्ट में बांध देने भर का नाम है? क्या शादियों का मतलब हमने इतना ही समझा है? यदि हां, तो कहना नहीं होगा कि आज शादियां क्यों तमाशा बनती जा रही हैं।

मुझे सुशांत से हमदर्दी है, लेकिन हर व्यक्ति जिसने आत्महत्या कर ली हो या जिसकी हत्या कर दी गयी हो, वह पूरी तरह से निर्दोष और निष्कलुष ही हो, इसकी क्या गारंटी है? जीवन में अनेक प्रिय-अप्रिय परिस्थितियों के पैदा होने के लिए व्यक्ति खुद भी कुछ न कुछ मात्रा में ज़िम्मेदार होता ही है। आखिर किसी लड़की को, जो उसकी पत्नी भी नहीं थी, उसने अपने जीवन में इतना हावी कैसे हो जाने दिया कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसके पिता और बहन तक उससे मिलने और बातचीत करने को तरसने लगे? जब मैं यह कह रहा हूँ तो इसका यह मतलब नहीं है कि उसकी हत्या या उसे आत्महत्या के लिए उकसाने या बाध्य करने के गुनहगारों के प्रति मैं नरम हूँ। उनके लिए तो मैं निष्पक्ष जांच करके सख्त से सख्त सज़ा की मांग कर ही रहा हूँ।

एक और बात कहना बेहद ज़रूरी है। भारत के चरित्र को भ्रष्ट करने में मीडिया का रोल भी अत्यंत भयानक है। मुझे याद है कि मेरे बिहार के एक चरित्रहीन शिक्षक मटुकनाथ ने अपनी छात्रा जूली को प्रेमजाल में फंसा लिया था। देखा जाए तो उस चरित्रहीन की यह हरकत शिक्षक-छात्रा संबंध की मर्यादा को तार-तार करने वाला और समाज के भरोसे को हिला देने वाला था, लेकिन बदचलन मीडिया ने उस चरित्रहीन को “लवगुरु” बना दिया। उसे इतना ग्लैमराइज कर दिया कि नए लड़के-लड़कियां उसे अपना रोल मॉडल मानने लगे। यह अलग बात है कि उस चरित्रहीन शिक्षक ने कुछ साल भोगने के बाद जूली को भी छोड़ दिया और कम चर्चित कहानियों से पता चला कि जूली आज एक तरह से अपने जीवन का नरक भोगने के लिए बाध्य है। लेकिन इससे संबंधित रिपोर्ट्स आपने मीडिया में न के बराबर देखी होगी। जब भारत का चरित्र बिगाड़ना था, तो मीडिया ने एक चरित्रहीन को लवगुरु बना दिया, लेकिन जब भारत को बताया जा सकता था कि ऐसे आवारा प्रेम-संबंधों का हश्र अंततः कैसा होता है, तब मीडिया उसे इस तरह पचा गया, जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो।

बहरहाल, एक बात याद रखिए, भारत की विवाह और परिवार व्यवस्था को नष्ट कर देंगे, तो भारत नष्ट हो जाएगा। सोच-समझकर शादी कीजिए, लेकिन जब कीजिए, तो उसकी मर्यादा को पूरी तरह निभाइए। प्री-मैरिटल, पोस्ट-मैरिटल अफेयर्स और लिव-इन रिलेशनशिप की भारत में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ऐसी आवारागर्दियों के पैरोकार एक दिन इस देश के शरीर से इसकी आत्मा को ही अलग कर देंगे। धन्यवाद।

(अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार)

अभिरंजन कुमार का यह पोस्ट आप यहां देख सकते हैं-



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