चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का विचार अच्छा तो है, पर व्यावहारिक रूप से आसान नहीं लगता!
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Boycotting Chinese goods is good but not so easy practically: Abhiranjan Kumar

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं। कई किताबों के लेखक और कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समाचार चैनलों के संपादक रह चुके अभिरंजन फिलहाल न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।


अनेक व्यक्ति और संगठन चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम चला रहे हैं। इस आशय की अनेक सूची भी सोशल मीडिया पर घूम रही हैं। सिद्धांततः इससे सहमत हूँ और मानता हूँ कि आज की दुनिया में किसी भी दुश्मन देश को दंड देने का सबसे करारा उपाय है उसकी आर्थिक रीढ़ तोड़ देना। लेकिन इस रास्ते में कुछ व्यावहारिक समस्याएं हैं।

1. जब तक भारत चीन से आयात करता रहेगा, तब तक भारतीय बाजार में चीनी सामान बिकते रहेंगे। और जब तक चीनी सामान बिकते रहेंगे, हम देशभक्त भारतीय दो पैसे सस्ते के लिए उसे ही खरीदते रहेंगे।

2. चाहे हम मेड इन इंडिया, मेड इन अमेरिका या मेड इन अदर कंट्रीज ही क्यों न खरीदें, उसमें इस्तेमाल हुए पुर्जे चीनी हो सकते हैं। इस प्रकार सामान किसी भी देश में बना खरीदें, लेकिन मुमकिन है कि उसकी कीमत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पहले ही चीन पहुंच चुका हो।

3. बहुत शीघ्रता से और बहुत बड़े पैमाने पर छोटे से छोटे बड़े से बड़े एक-एक आइटम की लिस्ट बनाकर उसे भारत में बनाने के लिए हमारे उद्यमियों को साधन संपन्न बनाना होगा, ताकि भारतीय बाज़ार में ज़रूरत की चीज़ों की कमी नहीं होने पाए। यह काम सरकार के इनिशिएटिव और सपोर्ट के बिना संभव नहीं है।

4. जनता को मालूम नहीं है कि कौन सा सामान चीनी है और कौन सा चीनी नहीं है। किस सामान पर लेबल तो कहीं और का चिपका है लेकिन भीतर चीनी पुर्जे ठुंसे पड़े हैं, यह तो और भी नहीं मालूम। विश्वसनीयता और सटीकता के साथ कौन बताएगा और कौन जागरूक करेगा उन्हें?

5. अगर चीन से सामान आते रहे और भारत में उन्हें खरीदार नहीं मिले तो भारतीय व्यापारियों को भी नुकसान होगा। इससे बचने के भी दो ही उपाय हैं- या तो भारत चीन से आयात पर पाबंदी लगाए या फिर भारतीय व्यापारी भी स्वयं इतने जागरूक हो जाएं कि चीन से सामान मंगाना बंद कर दें। फिर भी यह प्रश्न तो रहेगा कि जो सामान वे पहले ही मंगा चुके हैं, उनका क्या होगा?

6. जब हम भारतीयों ने जाने अनजाने में चीनी वायरस तक मुफ्त में खरीद लिया और आज यह घर घर, गली गली, गांव गांव तक फैलने के कगार पर है, जब उन्हें जागरूक और अनुशासित करने के सारे प्रयास विफल हुए, तो आपको लगता है कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर कैम्पेन चला लेंगे और भारत में चीनी सामान बिकना बंद हो जाएगा?

इसलिए चीनी वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार तब तक संभव नहीं है, जब तक कि यह सरकारी स्तर पर नीति का हिस्सा नहीं बनता, चीन से और चीनी पुर्जे वाली दूसरे देशों की वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध नहीं लगता, भारतीय व्यापारी भी इन्हें मंगाना बंद नहीं करते, नागरिकों को बड़े पैमाने पर इन्हें खरीदना बंद करने के लिए जागरूक नहीं किया जाता और भारतीय उद्यमियों को प्रेरित करके और सहायता देकर इसके लिए सबल और सक्षम नहीं बनाया जाता।

यानी गेंद मूल रूप से भारत सरकार के पाले में है, लेकिन ऐसा एक्सट्रीम स्टेप वह शायद तभी उठा पाएगी, जब भारत का चीन से पूर्ण युद्ध या सीमित ही सही, भयानक युद्ध छिड़ जाए या भारत और चीन के बीच सारे राजनयिक संबंध भी समाप्त हो जाएं। क्योंकि आज की दुनिया में कोई देश किसी अन्य देश के खिलाफ बहुत जल्दबाज़ी में ऐसे एक्सट्रीम कदम नहीं उठा सकता, वो भी तब जबकि वह दुष्ट ही सही, लेकिन उसका पड़ोसी हो।

आपको याद होगा कि पार्लियामेंट पर अटैक (दिसंबर 2001) और उसके बाद मुंबई समेत अनेक जगहों पर हुए हमले के बाद भी भारत अगले 17 साल तक पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा नहीं छीन पाया था। यह छीना गया पिछले साल (फरवरी 2019), पुलवामा पर हुए हमले के बाद। जबकि मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीनना व्यापार रोकना नहीं, केवल अतिरिक्त फेवर रोकना भर था। इसके बाद जब अगस्त 2019 में भारत ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाई, तब पाकिस्तान ने भी भारत से व्यापारिक संबंध स्थगित करने का एलान किया।

ध्यान रहे कि 2018-19 में भारत और पाकिस्तान के बीच महज 2.44 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था। इसकी तुलना में 2018-19 में चीन के साथ भारत का कारोबार 95.54 अरब डॉलर रहा और वह भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। फिर जब डोकलम विवाद के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा, तो द्विपक्षीय व्यापार में कुछ कमी आई और अब अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। लेकिन चीन की अहमियत भारत के कारोबारी परिदृश्य में अभी भी कम नहीं हुई है।

आज भारत के घर-घर में चीनी सामान भरे पड़े हैं। इनमें से अनेक चीज़ों के आयात के लिए हम काफी हद तक चीन पर ही निर्भर भी हैं। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि भारत की चीन पर निर्भरता अधिक है और चीन की भारत पर कम है। भारत अगर निर्यात की तुलना में चीन से आयात अधिक करता है तो इसका स्पष्ट मतलब है कि भारत अगर सामान के लिए उसपर निर्भर है, तो चीन भी बाज़ार के लिए भारत पर निर्भर है।

इसलिए तनाव हद से ज्यादा बढ़ जाने पर भारत तो सामानों का इंतज़ाम कहीं और से भी कर सकता है, लेकिन चीन तो इतना विशाल बाज़ार खो ही देगा, जो इस पृथ्वी पर और कहीं भी मिलने से रहा। इसलिए मैं तो यही मानता हूं कि अगर भारत-चीन के बीच व्यापारिक संबंध टूटते हैं तो चीन को अधिक नुकसान होगा।

इसलिए, अगर भारत चाहे तो प्रत्यक्ष रूप से इसे सीमा विवाद की प्रतिक्रिया न बताते हुए कोरोना के नाम पर चीनी झोला वापस बीजिंग वापस भेज दे। कोरोना के नाम पर अमेरिका और यूरोपीय देश भी चीन से व्यापारिक संबंध समाप्त या सीमित कर लें तो और बेहतर। भारत इसके लिए कूटनीतिक तौर पर प्रयास करते हुए चीन में काम कर रही उन देशों की कंपनियों को भारत बुलाने के प्रयास भी कर सकता है, लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि वह कोरोना को जल्द से जल्द पछाड़े और अपने यहाँ उन कंपनियों के लिए अनुकूल माहौल बनाए।

यानी चीन को सबक सिखाने के लिए भारत को एक ठोस रणनीति बनानी होगी, जिसमें सामरिक, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति तीनों स्तरों पर उसे घेरना होगा। और यह सरकार स्तर पर ही संभव है। नागरिकों की भूमिका सरकार के स्पष्ट संकेत या नीति-निर्माण के बाद ही शुरू हो सकती है। धन्यवाद। जय हिन्द। जय हिन्द की सेना।



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