जानिए भगवान श्री लक्ष्मण को क्यों दिया गया था मृत्युदंड?
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How Lord Lakshmana died in the Ramayana?

रामायण में बहुत सी ऐसी कहानियां भी हैं, जिनके बारे में बहुत से लोगों को पता ही नहीं है। भगवान श्री राम (Lord Rama) के छोटे भाई लक्ष्मण जी के बारे में भी कई ऐसी जानकारी है, जिससे बहुत से लोग अवगत नहीं हैं। यहां हम आपको ऐसी ही एक कहानी बता रहे हैं, जो कि लक्ष्मण जी से जुड़ी है। आपको पता ही होगा कि लक्ष्मण जी को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है।

कुछ ऐसी है लक्ष्मण जी की कहानी (Story of the Lakshmana)

भगवान राम के वनवास की अवधि जब पूरी हो गई और उन्होंने लंका (Lanka) पर विजय भी प्राप्त कर ली तो रावण की मृत्यु के बाद वे अयोध्या लौट आए। जब तक भगवान राम वनवास में जीवन गुजार रहे थे, इस दौरान अयोध्या (Ayodhya) में राजकाज उनके छोटे भाई भरत ने संभाल रखा था। जब भगवान श्री राम अयोध्या वापस पहुंचे तो वहां का नजारा देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने देखा कि भरत (Bharat) सिंहासन पर न बैठ कर नीचे बैठे हुए थे और सिंहासन पर भगवान श्री राम के खड़ाऊ उन्होंने रखे हुए थे।

जब भगवान श्रीराम ने देखा कि भगवान श्रीराम लौट आए हैं तो उन्होंने फिर से राज्य का भार उन्हीं को सौंप दिया और कहा कि इस सिंहासन पर तो भैया सिर्फ आपका ही अधिकार है। इसलिए जब आप वनवास में थे तो मैंने आपके प्रतिनिधि के रूप में 14 वर्षों तक यहां राजकाज तो चलाया, लेकिन आपके खडाऊं को मैंने सिहासन पर हमेशा रखा। अब समय आ गया है कि आप मुझे इस झंझट से आजाद कर दें और राज्य का दायित्व संभाल लें। भगवान श्रीराम ने भरत के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और राजा के तौर पर उन्होंने राज्य की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।

एक दिन यमराज (Yamraj) को भगवान श्रीराम से कुछ विचार-विमर्श करने की जरूरत पड़ी। पहले भी वे कई बार भगवान श्रीराम से विचार-विमर्श उनके पास आकर कर चुके थे। पहली बार जब यमराज आए थे तभी भगवान श्रीराम से उन्होंने यह वचन ले लिया था कि जब उन दोनों के बीच कोई बातचीत चल रही होगी तो कोई आना नहीं चाहिए। जो भी आएगा उसे भगवान श्रीराम की ओर से मृत्युदंड दिया जाएगा। इस बार भी जब यमराज आए तो लक्ष्मण को भगवान श्रीराम ने द्वार पर खड़ा कर दिया और कहा कि किसी को भी अंदर मत आने देना।

भगवान श्रीराम की यमराज से जब वार्ता चल रही थी, उसी दौरान अपने क्रोध के लिए जाने वाले महर्षि दुर्वासा (Maharshi Durvasa) वहां आ गए। वे श्रीराम जी से मिलना चाह रहे थे। द्वार पर मौजूद लक्ष्मण ने बड़ी ही विनम्रता से महर्षि दुर्वासा को अंदर जाने से रोकने का प्रयास किया। उन्होंने महर्षि दुर्वासा से कहा कि भगवान श्रीराम इस वक्त किसी महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त हैं। इसलिए कृपया आप कुछ देर प्रतीक्षा कर लें। जैसे ही महर्षि दुर्वासा ने यह सुना वे बड़े क्रोधित हो उठे। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि तुम जाकर श्रीराम से तुरंत कहो कि या तो वे मुझसे अभी के अभी मिलें या फिर मैं अपने क्रोध की ज्वाला से पूरी अयोध्या को जलाकर भस्म कर दूंगा।

लक्ष्मण ने अब सोचा कि पूरे राज्य को भस्म होने से बचाने के लिए उनका बलिदान कोई मायने नहीं रखता है। इसलिए वे महर्षि दुर्वासा के संदेश को लेकर अंदर भगवान श्रीराम के पास पहुंच गए। भगवान श्रीराम भी तुरंत महर्षि दुर्वासा के पास आए और उनका अभिनंदन भी किया। इससे महर्षि दुर्वासा को बड़ी खुशी हुई। महर्षि दुर्वासा को खुश देखकर भगवान श्रीराम ने उन्हें अपने वचन के बारे में बता दिया और उनसे यह भी पूछा कि लक्ष्मण को अब मृत्युदंड से आखिर कैसे बचाया जाए।

इस पर महर्षि दुर्वासा ने भगवान श्रीराम को बताया कि यदि आप अपनी किसी प्रिय व्यक्ति को खुद से दूर कर देते हैं तो यह जो आपने उसका त्याग किया है, वह मृत्युदंड से कम नहीं है। लक्ष्मण ने जैसे ही यह सुना तो उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि आप से दूर होने से तो अच्छा यही होगा कि मैं मृत्यु को गले लगा लूं। यह कहकर भगवान लक्ष्मण ने भगवान श्रीराम का आशीर्वाद लिया और इसके बाद उन्होंने जल में समाधि ले ली। इस तरह से भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण की मृत्यु हुई।

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